Friday, December 6, 2024
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P2 International mental health day Madhya pradesh:आपके जीवन में आपके मन की बात होना ज़रूरी है


मेंटल हेल्थ की दिशा में ज़रूरी है जागरूकता

10 अक्टूबर विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है।क्यों न इस दिन से हम अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना प्रारंभ करे।
जीवन की बदलती शैली हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव डाल रही है।इस नकारात्मक प्रभाव का कारण हमारी जागरूकता की कमी है। अगर देखा जाये तो हम स्वास्थ्य को तीन भागो में बाट सकते है-
शारीरिक स्वास्थ्य
मानसिक स्वास्थ्य
समाजिक स्वास्थ्य
अगर आपका मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य सकुशल होगा तभी आपका समाजिक स्वास्थ्य उचित बनेगा। हम शारीरिक स्वास्थ्य हेतु कसरत, उचित ख़ान पान आदि सभी प्रयोग करते है परंतु मानसिक स्वास्थ्य के लिए क्या किया जाये? इस प्रश्न का उतर हमारे पास है ही नहीं।मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान ना देने से कई मानसिक बीमारिया हो सकती है बाइपोलर डिसऑर्डर, डिमेंशिया, अल्जाइमर, ए.डी.एच.डी, एंजाइटी और डिप्रेशन आदि.

इसके अलावा हमे ध्यान देना चाइए ‘स्पेसिफ़िक लर्निंग डिसऑर्डर’ पर जिन्हें हम एस.एल.डी. भी कहते है।यह जन्म से होने वाली बीमारिया है जिसे हमारा विशिष्ट ध्यान चाहिए। इनसे पीड़ित लोग हम जैसे ही आम है परंतु उन्हें कुछ न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
इसमें आती ही
ऑटिजम-यह एक विकास संबंधी पीड़ा है जिससे पीड़ित व्यक्ति को बातचीत करने में, पढ़ने-लिखने में और समाज में मेलजोल बनाने में समस्याए आती हैं
डिस्लेक्सिया- इस में पढ़ने लिखने व बोलने में समस्याए आती है।
डिसग्राफ़िया- इससे पीड़ित व्यक्ति को अक्षर बनाने में समस्याए आती है।
डायस्प्रेक्सिया- यह एक सामान्य न्यूरोलॉजिकल या ब्रेन आधारित डिस्ऑर्डर है, जो मूवमेंट और कोर्डिनेशन को प्रभावित करता है।
डाइस्कैल्कुलिया- इस में व्यक्ति को गणित समझने या उससे करने में समस्याए आती है।
एसी समस्याओं से पीड़ित बच्चो को अगर सही शिक्षण दिया जाये तो वह एक आम जीवन जी सकते है। इन्हें विकार समझना हमारी भूल है देखा जाये तो यह बस एसे पिड़त बस दुनिया एक अलग नज़रिए से देखते है।
स्पेसिफिक लर्निंग डिसऑर्डर जन्म से होते है इसमें पीड़ित का कोई दोष नहीं।
परंतु जो मानसिक समस्याय हम स्वयं उत्पन्न करते है उन्हें रोकना आवश्यक है।
कैसे रखें अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान?
अपने मन पसंदीदा संगीत को प्रतिदिन सुने। यह म्यूजिक थेरेपी का काम करता है।
पर्यावरण में समय बिताये, हरियाली का अनुभव करे।
अपने सभी भावों को प्राथमिकता दे, सिर्फ़ ख़ुशी को नहीं ।
अपने मनपसंदीदा खेल या गतिविधि को प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट करे।
बातो को अपने मन में दबाये ना और उन्हें शब्दों कि रूप में प्रकट करे। अगर आप बोल कर नहीं करना चाहते तो लिख कर करे।
ध्यान व योग करना सीखे और उससे रोज़ करना प्रारंभ करे।
कसरत करिए या प्रकृति में टहलिये।
नींद सही ढंग से लीजिए।
इनमें से जो भी आपके अनुरूप है वह आप प्रतिदिन आसानी से कर सकते है। अगर यह सब करने का समय आपके पास नहीं है तो आप सचेतना यानी माइंडफुलनेस को प्रतिदिन में अपनाये। अगर आप अपने सभी इमोशन्स/ भावनाओं को समझेंगे और सभी को अपनी प्राथमिकता देगें तो आप अपने आप ही मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम कर पायेंगे। हर इमोशन की अपनी जगह है।उससे भागे ना उसे महसूस करे यह बहुत ज़रूरी है ।
कुछ टिप्स हमारी ग्रहिणिओ के हेतु, क्योकि वह सबका ध्यान रखते-रखते खुदका रखना भूल जाती है।
आप अपने ग्रह कार्यों को अपने पसंदीदा संगीत के साथ करे।
प्रतिदिन कम से कम २० मिनिट स्वयं को दे ।
अपनी रुचि का कार्य प्रति दिन करे जैसे नृत्य, गायन, बाग़वानी, , बुनाई आदि
स्वयं का ध्यान रखना भी प्रारंभ करे।
शरीर को सही आराम भी दे ।
पैरो व हथों की मालिश से भी हैप्पी हॉर्मोन रिलीज़ होते है।
अगर बाहर जाना संभव नहीं है, तो अपने घर के आँगन या छत पर ही खुली हवा में समय बिताये।
यह सभी छोटे-छोटे प्रयोग अपनी जगह आवश्यक है परंतु सबसे आव्यशक है आपका अपने अंदर स्वीकृति लाना। ये स्वीकृति आपको अपने ट्राइमा/ सदमे के हेतु। अपने लोगो को कहते सुना होगा की उसमे मन में सदमा बेठ गया, यह ट्रामा आपको जीवन सुख पूर्वक नहीं जीने देता। जितना समय आप इस ट्रामा को पकड़ कर रखेंगे यह आपको परेशानी देता रहेगा। मानो आप अपने हाथ में एक पानी का ग्लास ले कर खड़े है अब इससे आप १० मिनट भी पकड़ेंगे तो हाथ दर्द करेगा और सोचिए अगर इस ही ग्लास को आप कई सालों तक पकड़े रखेंगे तो आपका हाथ सुन्न होजाएगा असहनीय वेदना होगी। एसे ही सालो से बना हुआ ट्रामा आपको सुन्न और वेदना का कारण बन सकता है।
हम किसी भी अनहोनी को सबसे पहले नकारते है और उससे अपनाने से डरते है। आपके लिए आवश्यक है कि आप इन भावों को स्वीकृति दें और अपनाए ताकि आप आगे बढ़ पाये।
अपने मानसिक स्वास्थ्य का ख़्याल रखिए क्योकि आपका मस्तिष्क 24 घंटे लगातार बिना रुकावट काम करता है और इसका स्वस्थ हमारे लिए अति आवश्यक है।इसप्र सही ध्यान ना दे पाना हमारे समाज कि लिए चिंताजनक विषय बनता जा रहा है।
आये दिन आत्महत्या व आत्महानि के क़िस्से बढ़ते जा रहे है। एसे लोगो पर ध्यान ना देना हमारी भूल है।आत्महानि या आत्महत्या करने कि विचार रखने वाले व्यक्ति में आपको कई लक्षण दिख जाते है जो आपको अपनी सजकता से समझना ज़रूरी है।एसे लोगो में कार्टिसॉल नामक हॉर्मोन की वृद्धि से नकारात्मक ख़्याल बढ़ते रहते है। यह चाह कर भी उन्हें रोकने में असमर्थ हो जाते है। क्या आप चाह कर शरीर में गेस/ व्यादी को बनने से रोक सकते है ? नहीं! तभी एसे व्यक्ति अपने ऊपर क़ाबू खो कर एसी राह पर चल पड़ते है। इन पीड़ितो को पहचान कर सही इलाज दिलवाना समाज की ज़िम्मेदारी है। एसे पीड़ितो को मनोचिकित्सक से दवाई और मनोवेज्ञानी से थेरेपी की आवश्यकता होती है।
लक्षण-
जीवन कि प्रति आयाधिक नकारात्मकता।
मेरे मरने से किस फ़र्क़ पड़ेगा! या क्या मतलब एसे जीवन का! एसे विचार प्रकट करना
एसे व्यक्ति जो खुदको बोझ मानने लगे।
छोटी भी गलती पर आयाधिक ग्लानि या अत्यधिक ग़ुस्सा अकारण।
शरीर पर चोट के एसे निशान होना जिसका जवाब वे ना दे पाये।
मज़ाक़ में मरने की बाते करना।
अचानक से एकांकी हो जाना।
हमे समाज में जागरूकता लाने की अत्यधिक अव्यशकता है जिससे हम मानसिक रूप से स्वास्थ्य बने और हम सभी पूर्णतः स्वस्थ हो सके।अपने मानसिक स्वास्थ्य पर आज से ही ध्यान देना शुरू करे।
अगर इन सभी चीज़ो से आपको कोई लाभ ना हो और आपके मन में चिंता बनी रहे तो आप मनोचिकित्सक एवं मनोवेज्ञानी से बात करे।
भारत में कई हेल्पलाइन है, कई क्लब और संस्थाये है।
में ख़ुद अपने क्लब होल्डस्पेस के साथ मिलकर मानसिक स्वास्थ्य कि प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य करती हूँ।आप भी चाहे तो एसी संस्ताओं से जुड़ सकते है।

-आलौकिता अन्नपूर्णा रवीश गौड़
मनों विज्ञान शोधकर्ता
वाईस प्रेसिडेंट होल्डस्पेस

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