मंदसौर। दुनिया में आपूर्ति का 95 प्रतिशत कैसर उत्पादन करने वाला देश ईरान है लेकिन गुणवत्ता में कश्मीर का कोई तोड़ नहीं। कहानी यहीं खत्म नहीं हुई, अब मंदसौर में इंडोर फार्मिंग में तैयार डॉ कुणाल राठौर , और डॉ निकिता राठौर की कैसर दे सकती है कश्मीरी कैसर की गुणवत्ता को टक्कर। महत्वपूर्ण बात यह है कि सनातन धर्म के गायत्री मंत्र और ओम की ध्वनी कैसर के फूल पर प्रयोग की गई। इसका परिणाम इसकी गुणवत्ता और विकास दोनों पर सकारात्मक नजर आया है । ढाई से तीन साल की मेहनत के बाद इंडोर फार्मिंग में तैयार हुई डॉ कुणाल राठौर , और डॉक्टर निकिता की मेहनत रंग लाई।
मेडिकल प्रोफेशन और मेडिकल डिग्री वाले डॉ कुणाल और निकिता ने कृषि क्षेत्र में भी करिश्मा कर दिखाया। अब इनके इस रिसर्च और कैसर की गुणवत्ता पर मुहर लगने की देर है। इसके बाद स्वास्थ्य के क्षेत्र के साथ मंदसौर के डॉ कुणाल और निकिता का नाम कृषि के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना लेगा।
सबसे महत्वपूर्ण ध्वनी
डॉ. कुणाल राठौर ने बताया इसमें एरोपोनिक तकनीक का उपयोग किया गया। जिसमें एरो का मतलब हवा और पॉनिक का मतलब होता है सहायता। इसमें सबसे महत्वपूर्ण ध्वनी का उपयोग रहा। जिससे पौधे का विकास और क्वालिटी में निखार आया। एक समान वाइब्रेशन रूम में सभी पौधों को बीज गायत्री मंत्र की ध्वनी सुनाई गई पक्षियों की आवाज पौधों को सुनाई गई। महत्वपूर्ण यह रहा कि हर पौधे तक समान ध्वनी पहुँचे , इस तरह की व्यवस्था की गई।
डॉ कुणाल ने बताया के अमेरिका यूरोप देशों में उपज की ग्रोथ और गुणवत्ता को लेकर इस तरह का प्रयोग किया जाता है। लेकिन इसमे में हमने आध्यात्मिक वाइब्रेशन का उपयोग किया। इसके अलावा एक कंट्रोल ग्रुप बनाकर जांच भी की गई। जिस पौधे में ध्वनि कम पहुंची उसकी ग्रोथ कम हुई। जबकि जिन पौधों ने ध्वनी को सुना उसका विकास जल्द और गुणवत्ता वाला हुआ।
बना दिया इंडोर रुम को कश्मीर
कुणाल और निकिता का इंडोर फार्मिंग रूम कश्मीर से कम नहीं है। कैसर के पौधों को ऐसा वातावरण दिया गया है जैसा कश्मीर में है। धूप पर रिसर्च कर पौधों को लाईट उपलब्ध कराई गई कार्बन डाईऑक्साइड के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। लाईट, कार्बन डाईऑक्साइड और नमी कितनी मात्रा में कैसर को आवश्यक है, रिसर्च कर जाना गया और फिर वही एनवायरनमेंट दिया गया ।
कुणाल ने बताया कि सबसे पहले पौधे को 25 डिग्री तापमान पर रखा जाता है और अंत में यह तापमान 6 डिग्री तक किया जाता है।
गुड फॉर हैल्थ है ये कैसर
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कुणाल की कैसर दुनिया में कहीं भी उगने वाली कैसर को मात दे सकती है। इसका कारण है कि वे कैसर को खुले में लगाते है। जहां प्रदूषण और कई प्राकृतिक चीजों का सामना कैसर के पौधे को करना होता है …पर इंडोर फार्मिग में नमी, कार्बन डाईऑक्साइड से लेकर हर तत्व लिमिट में दिए गए है न कम और न ज्यादा बिलकुल संतुलित क्वांटिटी में ज़रूरत के तत्व कैसर को मिले है । रूम में प्रवेश वर्जित रखा गया इस तरह से बिना किसी नकारात्मक एनर्जी का सामना कर कैसर का उत्पादन किया गया है । कैसर की टेस्टिंग करवाकर इसकी गुणवता को प्रमाणित भी करवाया जाएगा।
कश्मीर रुके, कंद लेकर आए
कुणाल ने बताया कि करीब दो से ढाई साल से इस रिसर्च पर वह काम रहे हैं। इसके लिए कश्मीर कई दिनों तक रहे। यहां के माहौल और केसर की फसल को देखा। उसके बारे में जानकारी जुटाई। इसके बाद वहा से कंद लेकर आए, जिसमें एक पौधे का विकास होता है। कंद के बारे में कुणाल ने बताया कि कंद से पौधे निकलते हैं। इसके बाद कंद को फिर से मिट्टी में रखा जाता है। इस कंद से अन्य कंद भी बनते हैं।
इतना आया खर्च
कुणाल ने बताया कि पांच से छह लाख रुपए लेब या इंडोर रूम तैयार करने में में खर्च किया गया। साल में एक फसल तैयार की जा सकती है। छोटे प्रयोग के तौर पर किए गए इस काम में करीब आधा किलो कैसर निकाली गई, कुणाल ने कहा कि यह बड़े लेवल पर भी किया जा सकता और ये उनके प्लान में भी है।
डॉक्टर पत्नी ने भी किया सहयोग
दंत चिकित्सक कुणाल की पत्नी निकीता भी चिकित्सक है। दोनों ही नर्सिंग होम संभालते हैं। कुणाल की पत्नी निकीता राठौर ने भी कुणाल के इस प्रयोग में उनका बखूबी साथ दिया। दोनों बताते हैं कि एक कैसर के पौधे को संभालता है तो दूसरा मरीज़ को।
ऑनलाइन व ऑफलाइन प्रशिक्षण देने की भी है प्लानिंग
डॉ कुणाल कैसर खेती का प्रशिक्षण देने की भी प्लानिंग कर रहे है । उनका कैसर खेती से जुड़ा एजेंडा है कि नए रोज़गार के तरीक़े युवाओं के बीच में आए जिसके लिये वो ऑनलाइन व ऑफलाइन मॉडल से प्रशिक्षण देने का प्लान भी रखते है ।