Friday, December 6, 2024
Homeधर्मwhy is tulsi vivah celebrated: क्यू होता है तुलसी विवाह ?

why is tulsi vivah celebrated: क्यू होता है तुलसी विवाह ?

तुलसी से जुड़ी एक कथा बहुत प्रचलित है। श्रीमद देवी भागवत पुराण में इनके अवतरण की दिव्य कथा भी बताई गई है।
एक बार भगवान शिव एक अवसर पर बहुत क्रोध आया देवताओं के निवेदन पर उन्होंने क्रोध रूप अपने तेज को समुद्र को समर्पित कर दिया था। उससे एक महान तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। समुद्र अर्थात जलधि से उत्पन्न होने के कारण इस बालक का नाम जलंधर रखा गया। यह आगे चलकर जलंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना। इसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था।
“दैत्यराज कालनेमि की कन्या वृंदा का विवाह जलंधर से हुआ। जलंधर महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने भगवान विष्णु की पत्नी, लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में अपना लिया। वहां से भावनात्मक रूप से पराजित होकर वह देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया।
  वह भगवान देवाधिदेव शिव का ही रूप धर कर माता पार्वती के समीप गया, परंतु मां ने अपने योगबल से उसे तुरंत पहचान लिया तथा वहां से अंतर्ध्यान हो गईं।
देवी पार्वती ने क्रुद्ध होकर सारा वृतांत भगवान विष्णु को सुनाया। जलंधर का वध करने के लिए भगवान शिव स्वयं युद्ध करने चले गए किंतु जलंधर किसी भी तरह पराजित नहीं हो पा रहा था और और ना ही मर पा रहा था, क्योंकि जलंधर की पत्नी वृंदा अत्यन्त ही पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति से जलंधर ना तो मारा जाता था और ना ही पराजित होता था। इसीलिए जलंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना बहुत ज़रूरी था।
दैवीय सत्ता को स्थापित करने तथा उसकी रक्षा करना देवताओं के लिए चिंता का विषय हो गया।
  इसी कारण भगवान विष्णु एक ऋषि का वेश धारण करके वन में जा पहुंचे, जहां वृंदा अकेली भ्रमण कर रही थीं। भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गईं। ऋषि ने अपना प्रभाव जमाने के लिए वृंदा के सामने एक पल में दोनों को भस्म कर दिया। उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जलंधर के बारे में पूछा कि- महाराज युद्ध में मेरे पति की स्थिति क्या है? तो विष्णु रूपी ऋषि ने अपने माया जाल से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जलंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़। अपने पति की यह दशा देखकर वृंदा मूर्छित हो कर गिर पड़ीं। होश में आने पर उन्होंने ऋषि रूपी भगवान से विनती की कि वह उसके पति को जीवित करें।
भगवान ने अपनी माया से पुन: जलंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया, परंतु स्वयं विष्णु भी उसी शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल कपट का ज़रासा भी आभास नहीं हुआ।
जलंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही युद्ध क्षेत्र में उसके पति की शक्ति क्षीण हो गई और वृंदा का पति जलंधर युद्ध में मारा गया।
इस सारी लीला का जब वृंदा को पता चला, तो उसने क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु को शिला (पाषाण) होने का श्राप दे दिया तथा स्वयं आत्म बल से भस्म हो गईं। जहां वृंदा भस्म हुईं, वहां भगवान विष्णु की कृपा से तुलसी का एक पौधा उत्पन्न हो गया।
भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा, ‘हे वृंदा। तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। जो भी मनुष्य मेरे पाषाण रूपी शालिग्राम के साथ तुलसी का विवाह करेगा उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा।’
भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि-तुम्हारा तुलसी पौधे का पत्ता मैं सदैव अपने मस्तक पर धारण करूंगा तथा जब तक मेरे नैवेद्य में अर्थात भोजन में तुलसी पत्र नहीं डाला जाएगा तब तक मैं भोजन ग्रहण नहीं करूंगा। तब से ही देवउठनी ग्यारस अर्थात छोटी दीवाली को भारत के हिंदू घरों में अपने घर आंगन में मंडप सजाकर भगवान विष्णु के साथ तुलसी का विवाह संपन्न किया जाता है। भगवान विष्णु के स्वरूप के मस्तक पर तुलसी चढ़ाई जाती है तथा उनके नैवेद्य में तुलसी पत्र डालकर भोग लगाया जाता है तथा इसी दिन से ही हिंदू समाज में विवाह समारोह प्रारंभ हो जाते हैं।
  जिस घर में तुलसी का पौधा होता हैं, वहां यम के दूत भी असमय नहीं जा सकते। गंगा व नर्मदा के जल में स्नान तथा तुलसी का पूजन बराबर माना जाता है। चाहे मनुष्य कितना भी पापी क्यों न हो, मृत्यु के समय जिसके प्राण मंजरी रहित तुलसी और गंगा जल मुख में रखकर निकल जाते हैं, वह पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है। जो मनुष्य तुलसी व आंवलों की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पितर भी मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं।
इसलिए प्रत्येक हिंदू घरों के आंगन में तुलसी का पौधा स्थापित किया जाना चाहिए एवं प्रातः तथा संध्या के समय इनकी पूजा अर्चना करते हुए इसकी छाया में दीप प्रज्वलित कर प्रणाम करने से घर में शांति तथा स्वास्थ्य का वर्धन होता है।
संकलन-रमेशचन्द्र चन्द्रे

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments