मंदसौर। पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री अर्जुनसिंह राजनीति के बड़े खिलाड़ी रहे। इनकी गुगली में संसदीय क्षेत्र के दो मुख्यमंत्री भी उलझ गए। दोनों को मिलाकर प्रदेश में तीन मुख्यमंत्रियों को इस्तीफा तक देना पड़ा।
चुरहट सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे अर्जुन सिंह को 1980 में पहली बार मुख्यमंत्री बनाया गया। इसकी पटकथा 1977 में लिखी गई थी। तब अर्जुन सिंह मप्र विस के नेता प्रतिपक्ष चुने गए थे। विपक्ष की भूमिका उन्होंने राजनीति के उस माहिर खिलाड़ी की तरह अदा की कि सत्ता पक्ष को तत्कालीन तीन मुख्यमंत्रियों कैलाशचंद जोशी, संसदीय क्षेत्र के वीरेंद्र कुमार सकलेचा और सुंदरलाल पटवा को इस्तीफा देने को मजबूर कर दिया था। 1980 के चुनाव में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला। तब अर्जुन सिंह को सीएम बनाया गया। पांच साल बाद 1985 में 251 सीटों के साथ दोबारा कांग्रेस सत्ता में आई और फिर अर्जुन सिंह सीएम बने। 11 मार्च 1985 को उन्होंने शपथ ली और अपने कैबिनेट के मंत्रियों के नामों को अंतिम रूप देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मिलने प्रधानमंत्री आवास पहुंचे। 12 मार्च को जैसे ही मुलाकात हुई, राजीव गांधी ने उनसे इस्तीफा मांग लिया। उनकी जगह मोतीलाल वोरा को मुख्यमंत्री बनाया गया था। हालांकि 1988 में अर्जुन सिंह वापस लौटे और तीसरी बार सीएम बने।
नायक की भूमिका भी निभाई, एक दिन का बने सीएम
कुछ समय पूर्व एक हिंदी फिल्म आई थी-नायक। इसमें नायक अनिल कपूर 24 घंटे के लिए मुख्यमंत्री बनते हैं। कहानी फिल्मी है, पर कहते हैं न कि कहीं न कहीं वास्तविक जीवन में भी कुछ ऐसा हुआ होता है या हो रहा होता है, मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह के साथ कुछ ऐसा ही हो चुका है। तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके अर्जुन सिंह को दूसरी पारी में 1985 में केवल 24 घंटे के लिए मुख्यमंत्री का पद मिला था। उन्हें ऐसा कहा नहीं गया था। वे पूरे पांच साल के लिए मुख्यमंत्री पद मिलने के खयाल से ही आए थे, लेकिन घटनाक्रम कुछ ऐसा हुआ कि शपथ ग्रहण के अगले ही दिन उन्हें पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। इस्तीफा देना इतना आसान नहीं था पर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के फरमान के आगे झुकना पड़ा। उनसे त्यागपत्र लेकर उन्हें पंजाब में राज्यपाल पद के लिए कूच करने को कह दिया गया।