घटना: शनिवार, शाम

स्थिति: EPRA INDIA का हेड ऑफिस बंद, बोर्ड गायब, संचालक लापता

क्या है EPRA इंडिया ठगी कांड?

EPRA INDIA नाम की एक कंपनी ने बीते कुछ महीनों में मंदसौर, नीमच और आसपास के ग्रामीण इलाकों में 300 रुपये में “ड्रीम टिकट” बेचना शुरू किया। दावा था कि 2 जुलाई को लकी ड्रा निकाला जाएगा, जिसमें लोगों को मिलेंगी:

कंपनी ने गांव-गांव जाकर रसीदें बांटीं, QR कोड स्कैन करवाया और हर एजेंट को ₹100 कमीशन दिया गया। प्रचार का तरीका भी बेहद चतुर था — धार्मिक आयोजनों, भजन संध्याओं और मेलों में इसका जोर-शोर से प्रचार हुआ। लोगों को “धार्मिक विश्वास” की आड़ में “वित्तीय भ्रम” में फंसा दिया गया।

अब हकीकत ये है –

पिपलिया मंडी स्थित EPRA इंडिया के मुख्य कार्यालय पर ताले लटकते पाए गए। कुर्सियाँ, फाइलें, बोर्ड सब गायब। यह एक सोची-समझी “क्लीन स्वीप” कार्रवाई थी — जिसमें लगता है कंपनी के संचालकों ने पहले ही पूरी योजना बना ली थी कि ठगी के बाद कैसे गायब होना है।

प्रशासन की चुप्पी क्यों?

सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब इतने बड़े स्तर पर यह योजना गांव-गांव में चल रही थी, तो:

  1. क्या प्रशासन को इसकी भनक नहीं लगी?
  2. क्या EPRA INDIA के पास कोई वैध लाइसेंस था?
  3. क्या इस लकी ड्रा योजना को वैधानिक मंजूरी मिली थी?
  4. क्या रसीदें, कूपन और QR कोड किसी कानूनी दस्तावेज के अंतर्गत आते हैं?
  5. और सबसे अहम – क्या ये मामला सिर्फ एक सिविल विवाद बनाकर टाल दिया जाएगा?

एजेंट्स की भूमिका पर भी सवाल

EPRA स्कीम को फैलाने में स्थानीय एजेंटों की भूमिका सबसे अहम रही। इन्हीं एजेंटों ने अपने जान-पहचान वालों को “बड़ा मौका” बताकर टिकट बेचे। लालच में आकर खुद भी कंपनी के सदस्य बने और फिर गांव-गांव लोगों को जोड़ा।

₹100 की कमीशन ने उनकी समझ पर पर्दा डाल दिया।

अब सवाल ये है कि:

अगर एजेंट खामोश रहे, तो उनकी लोकल साख पर भी गहरा धब्बा लगेगा।

यह ठगी नहीं, एक सुसंगठित क्राइम है

EPRA INDIA का यह केस केवल एक ठगी का मामला नहीं, बल्कि पूर्व-नियोजित वित्तीय अपराध है — जिसमें जनता को झूठे सपने दिखाकर पैसे ऐंठे गए।

जनता से अपील – जागरूक रहें, ठगे न जाएं

कोई भी स्कीम, इनाम या उपहार वाली योजना अपनाने से पहले यह ज़रूर जांचें:

“लालच में फंसना ही पहली ठगी है।”

सावधानी ही आपकी सबसे बड़ी सुरक्षा है।

प्रशासन की ज़िम्मेदारी क्या है?

अब समय आ गया है कि:

EPRA – एक और नाम उस काली सूची में

जहां ‘धार्मिक आस्था’ को ढाल बनाकर ‘वित्तीय लूट’ को अंजाम दिया गया।

और हर बार की तरह — प्रशासन चुप, जनता ठगी हुई, और गुनहगार गायब।

EPRA इंडिया का भाग जाना केवल एक कंपनी का भागना नहीं है, यह एक सिस्टम की विफलता है — जिसमें सब कुछ दिख रहा था, फिर भी किसी ने कुछ नहीं देखा।

अगली EPRA किसी और नाम से फिर लौटेगी, अगर आज की ठगी पर जनता चुप रही।

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