पाताललोक पड़ताल
मनासा । के सरकारी सिविल अस्पताल में इलाज नहीं, मजबूरी मिल रही है। डॉक्टर जन औषधि केंद्र को दरकिनार कर मरीजों को बाहर मेडिकल की दवाई लिख रहे हैं। मेटरनिटी डिपार्टमेंट का हाल तो और बदतर है, यहां ग्लब्स तक नहीं!
पाताल लोक की पड़ताल में सामने आया कि गर्भवती महिलाओं के परिजन खुद मेडिकल दौड़कर ग्लब्स खरीदकर ला रहे हैं।
जन औषधि में दवाई नहीं, बाहर के बिल थमा रहे डॉक्टर!
टीना नाम की मरीज की सरकारी पर्ची लेकर जब हमारी टीम जन औषधि केंद्र पहुंची, जवाब साफ था कि
“ये दवाई हमारे पास नहीं… बाहर मेडिकल की है।”
यही हाल खुमान सिसोदिया का यह उन्हें 290 रुपए की दवाई बाहर से खरीदनी पड़ी।
डॉक्टरों का कहना
“जो दवाई केंद्र पर है वो लिखते हैं… मरीज की सहमति से बाहर की दवाई लिखते हैं।” लेकिन सवाल बड़ा है सरकार की स्कीम और अस्पताल की दवाई कहां जा रही है?

ग्लब्स की डिमांड 1000… मिलते सिर्फ 250!
मेटरनिटी स्टाफ का साफ कहना हे कि “हर महीने डिलेवरी और पीवी के लिए 1000 ग्लब्स चाहिए… पर अस्पताल सिर्फ 250 दे रहा है। ऐसे में कैसे काम करें?” परिणाम यह है कि
अनुराग मालपानी को 40 रुपए देकर मेडिकल से ग्लब्स खरीदना पड़े। बाद में पत्नी को नीमच रेफर कर दिया गया।
अस्पताल का तर्क…
“जिला चिकित्सालय नीमच से सप्लाई रुकी है… रोगी कल्याण समिति से खरीदकर भरपाई कर रहे हैं।”

36 बेड की मेटरनिटी… पर किसी भी बेड पर बेडशीट नहीं!
ठंड का मौसम… रेग्जीन के ठंडे गद्दे… और बेडशीट कहीं नहीं!
प्रभारी ने कहा—“धुलाई में गई हैं, आते ही बिछा देंगे।”
सवाल:
क्या 100 बेड के अस्पताल में सिर्फ 30 बेडशीट पर्याप्त हैं?
सोनोग्राफी मशीन सिर्फ गर्भवती महिलाओं के लिए!
दूसरे मरीजों को मजबूरी में नीमच जाना पड़ रहा है क्योंकि विशेषज्ञ डॉक्टर ही नहीं हैं।
20 करोड़ की बिल्डिंग, लेकिन आधी-अधूरी सुविधा
नीमच रोड पर बने 100 बेड के अपग्रेडेड अस्पताल में सुविधाओं की जगह अव्यवस्था है।
उपचार कराने आने वालों पर आर्थिक बोझ, दौड़धूप, और असंतोष लगातार बढ़ रहा है।
“कलेक्टर से शिकायत करेंगे, यह स्वास्थ्य तंत्र की पराजय है”
कांग्रेस नेता आर. सागर कछावा ने कहा “डॉक्टरों द्वारा बाहर मेडिकल की दवाई लिखने और मरीजों से सामान मंगाने की शिकायतें मिल रही हैं। रोगी कल्याण समिति के पास फंड होने के बावजूद यह व्यवस्था न होना शर्मनाक है। कलेक्टर से शिकायत करेंगे।”
“बाहर की दवाई लिखने वालों को नोटिस… ग्लब्स-बेडशीट खरीदी जाएगी”
डॉ. उमेश बसेर, BMO मनासा ने कहानी “डॉक्टर वही दवाई लिखते हैं जो उपलब्ध है। मरीज की सहमति से बाहर की दवाई लिखी होगी, फिर भी जांच कर नोटिस देंगे। ग्लब्स और बेडशीट RKS फंड से खरीदी जाएगी।”
राजनीतिक प्रहार
“मनासा में स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार सबका दिवाला!
20 करोड़ की बिल्डिंग बनी, पर सुविधा शून्य। भाजपा सरकार और विधायक निजी अस्पतालों को प्राथमिकता दे रहे हैं।”
-सागर कछावा, जिला पंचायत सदस्य प्रतिनिधि
अस्पताल के बाहर बिक रही दवाइयाँ कितनी भरोसेमंद हैं?
MP के कफ सिरप कांड ने दिखा दिया कि कई छोटी फार्मा कंपनियों की दवाइयाँ क्वालिटी टेस्ट में फेल हो चुकी हैं। ऐसे में मनासा अस्पताल के पास बिक रही Stanmark और Lifekyor जैसी कंपनियों की दवाइयों पर भी सवाल उठ रहे हैं।

सबसे बड़ी समस्या
इन कंपनियों की दवाओं पर “अच्छी हैं या खराब”, “सेफ हैं या नहीं”—इसका कोई पब्लिक डेटा उपलब्ध ही नहीं है।
ना किसी बड़े ट्रायल की रिपोर्ट, ना कोई सरकारी खुले रिकॉर्ड।
जन औषधि में स्टॉक नहीं, और बाहर की दवाओं की क्वालिटी का कोई प्रमाण नहीं
मरीज मजबूरी में रिस्क लेकर दवाई खरीद रहे हैं।
सवाल:
• क्या अस्पताल के आसपास बिक रही दवाओं का कोई नियमित सैंपल टेस्ट होता है?
• कफ सिरप कांड जैसी घटनाएं रोकने के लिए कोई जांच प्रणाली है?





