
तेलिया तालाब में फिर मरी मछलियाँ पानी पूरा, लेकिन मौत का रहस्य बरकरार
मंदसौर | सावन की शुरुआत में जहाँ नगर पालिका मांसाहार पर रोक लगाकर धार्मिक भावनाओं के सम्मान की बात कर रही है, वहीं शहर का ऐतिहासिक तेलिया तालाब इन दिनों मछलियों की रहस्यमय मौत से दहला हुआ है। पूरा तालाब पानी से भरा है, फिर भी लगातार मरी हुई मछलियाँ दिखाई दे रही हैं।
तालाब के चौकीदार ने बताया कि सुबह उसने डेढ़ से दो किलो वजन की मछली मृत हालत में देखी। उसने बताया, “एक और मछली तैर रही थी, लेकिन कुछ देर बाद वो भी ऊपर आ गई।”
वहीं तालाब में रोजाना दाना डालने वाले व्यक्ति ने कहा — “यहां बार-बार मछलियाँ मरती हैं, कारण कभी पता नहीं चलता। सफाई और देखरेख की कोई जिम्मेदारी नहीं लेता।”
पानी पूरा, पर जीवन अधूरा
तेलिया तालाब में इस साल पानी की कमी नहीं है, लेकिन हालात फिर भी चिंताजनक हैं।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि तालाब में कई जगह से नालों का गंदा पानी तथा उद्योग का गंदगी सीधे आकर मिल रही है, जिससे पानी प्रदूषित हो गया है।
तालाब की सफाई कागजों में दर्ज है ।
यह वही तालाब है जहाँ पिछले वर्षों में भी मछलियों की सामूहिक मौत हुई थी। तब ऑक्सीजन की कमी, गंदगी और जल प्रदूषण को कारण बताया गया था। मगर कोई स्थायी समाधान आज तक नहीं हुआ।
निगरानी नहीं, दिखावा ज़रूर
शहर के प्रमुख जल स्रोतों में से एक यह तालाब नगर पालिका की जिम्मेदारी में आता है।
साल में एक बार साफ-सफाई की औपचारिकता पूरी कर ली जाती है, पर न तो जल परीक्षण रिपोर्ट ली जाती है और न ही मत्स्य संरक्षण योजना पर कोई अमल होता है।
पर्यावरण प्रेमियों का कहना है,
“जब धार्मिक आस्था के नाम पर पूरे शहर में मांसाहारी दुकानों पर ताले लगाए जा सकते हैं,
तो तालाब में मरती मछलियों पर आंख क्यों बंद है?”
स्थानीय नागरिकों की मांगें
तालाब का नियमित जल परीक्षण किया जाए।
मृत मछलियों की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक हो।
नगर पालिका में मत्स्य संरक्षण समिति का गठन हो।
तालाब में गिर रहे गंदे नालों के पानी का प्रवाह बंद किया जाए।
(फोटो विवरण)
तेलिया तालाब में तैरती मृत मछलियाँ…
नागरिकों ने बताया कि हर कुछ दिनों में ऐसी तस्वीरें दोहराई जाती हैं,
पर प्रशासन की उदासीनता जस की तस बनी हुई है।
“थल पर ताले, पर जल में तांडव क्यों? सावन में मांसाहार पर रोक लगाकर आस्था का सम्मान किया जा सकता है, तो तालाब में जलजीवों की रक्षा क्यों नहीं? हर मरी मछली प्रशासनिक लापरवाही की गवाही दे रही है, सवाल यही है कि इनकी आवाज़ कौन सुनेगा?”







