
नक्सल प्रभावित बालाघाट में पहली बार किसी महिला नक्सली ने आत्मसमर्पण किया है। यह सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि उस बदलाव की कहानी है जो देश के नक्सल-ग्रस्त इलाकों में नई उम्मीद जगा रही है।

बालाघाट का इतिहास: चार दशकों की नक्सल लड़ाई में नई सुबह
मध्य प्रदेश का बालाघाट जिला नक्सलवाद से दशकों से जूझ रहा है।
1980 के दशक से यहां माओवादी संगठन की गहरी पैठ रही है, खासकर महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की त्रि-जंक्शन (एमएमसी जोन) में।
घने जंगल, आदिवासी बहुल इलाका और कमजोर सड़क संपर्क ने इसे नक्सलियों के लिए सुरक्षित ठिकाना बना दिया था।
लेकिन हाल के वर्षों में हॉकफोर्स, सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस की संयुक्त कार्रवाइयों ने इस नेटवर्क की रीढ़ तोड़ दी है।
अब, महिला नक्सली का आत्मसमर्पण इस संघर्ष की दिशा बदलने वाला संकेत बन गया है।
सुनीता की कहानी: गरीबी से लेकर बंदूक तक, फिर वापस इंसानियत की ओर
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के इंद्रावती क्षेत्र के विरमन गांव की 23 वर्षीय सुनीता गरीबी और सामाजिक असमानता से टूट चुकी थी।
2022 में, सिर्फ 20 साल की उम्र में, उसने माओवादी संगठन का दामन थामा।
छह महीने की ट्रेनिंग के बाद वह कुख्यात कमांडर रामदेर की हथियारबंद गार्ड बन गई — वही रामदेर जो एमएमसी जोन में सक्रिय एक सेंट्रल कमेटी मेंबर (CCM) है।
सुनीता एरिया कमेटी मेंबर (ACM) के रूप में इंद्रावती, माड़ और बालाघाट के जंगलों में सक्रिय रही।
वह एक इंसास राइफल लेकर चलती थी, जिस पर सरकार ने 14 लाख रुपए का इनाम घोषित किया था।
संगठन में हताशा: सीनियर नक्सलियों के आत्मसमर्पण ने तोड़ा हौसला
सुनीता के बयान के मुताबिक, संगठन के भीतर अब टूटन शुरू हो चुकी थी।
छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में सोनू दादा, रूपेश दादा और कई सीनियर कैडर आत्मसमर्पण कर चुके थे।
अक्टूबर 2025 में बस्तर में 210 नक्सलियों का सामूहिक सरेंडर हुआ — जिसने निचले स्तर के कैडर का मनोबल तोड़ दिया।
“सीनियरों के सरेंडर से लगा कि संगठन कमजोर हो गया है। भूख, डर और परिवार से दूरी ने अंदर से तोड़ दिया,” — सुनीता ने पूछताछ में कहा।
31 अक्टूबर की सुबह 4 बजे, उसने जंगल में हथियार छिपाकर बालाघाट के चौरिया कैंप का रुख किया और हॉकफोर्स के सहायक सेनानी रूपेंद्र धुर्वे के सामने हथियार डाल दिए।
बालाघाट में आत्मसमर्पण: नक्सलियों के लिए बड़ा झटका
सुनीता ने हॉकफोर्स कैंप में आत्मसमर्पण करते हुए अपनी इंसास राइफल, तीन मैगजीन, पिट्ठू बैग और वर्दी सौंप दी।
यह आत्मसमर्पण लांजी थाना क्षेत्र के पिटकोना पुलिस आउटपोस्ट में हुआ — जिला मुख्यालय से करीब 110 किमी अंदर जंगल में।
आईजी (एंटी-नक्सल ऑपरेशन) राकेश कुमार पांड्रो ने कहा,
“यह 2023 की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति की पहली बड़ी सफलता है। सुनीता का फैसला नक्सलियों के लिए करारा झटका है।”
सीएम मोहन यादव की प्रतिक्रिया: “अब जो बचे हैं, आत्मसमर्पण करें या सामना करें”
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा:
“14 लाख रुपए की इनामी नक्सली सुनीता ने बालाघाट में आत्मसमर्पण किया है। पुलिस बल इस सफलता के लिए बधाई के पात्र हैं। अब जो बचे हैं, वे आत्मसमर्पण करें या पुलिस का सामना करने को तैयार रहें।”
उन्होंने प्रेस बयान में कहा,
“हम हिंसा छोड़ने वालों को सम्मानजनक जीवन देंगे, लेकिन हिंसा करने वालों के लिए जीरो टॉलरेंस की नीति है।”
खुलासे जो हिला रहे हैं नक्सल नेटवर्क
सुनीता ने पुलिस पूछताछ में कई अहम नामों का खुलासा किया —
रामदेर, विमला, तुलसी, चंदू दादा, प्रेम, अश्विरे और सागर जैसे सदस्य चिलौरा निवासी देवेंद्र की हत्या में शामिल थे।
पुलिस अब इनकी तलाश में है।
एसपी आदित्य मिश्रा ने कहा,
“सुनीता के बयान से एमएमसी जोन को कमजोर करने में मदद मिलेगी। हॉकफोर्स को सतर्क कर दिया गया है।”
नई नीति, नई जिंदगी
मध्य प्रदेश सरकार की 2023 नक्सली आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति के तहत सुनीता को अब सरकारी सहायता, कौशल प्रशिक्षण, आवास और सुरक्षा मिलेगी।
एएसपी पांड्रो के अनुसार,
“हमारा लक्ष्य है कि जो हिंसा छोड़ना चाहते हैं, उन्हें सम्मानजनक जीवन मिले।”
सुनीता ने खुद कहा,
“मैं परिवार से मिलना चाहती हूं। हिंसा से कुछ नहीं मिला।”
नक्सलवाद पर गिरता परदा: ‘अंधेरे का अंत, उजाले की शुरुआत’
2025 में अब तक 1,600 से अधिक नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं।
सुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, सरकार की नई नीति और लगातार ऑपरेशनों से नक्सलवाद का अंत करीब है।
सुनीता का आत्मसमर्पण सिर्फ एक खबर नहीं —
यह उस परिवर्तन का प्रतीक है जो बताता है कि हिंसा का रास्ता कहीं नहीं ले जाता, लेकिन बदलाव का साहस भविष्य बदल देता है।






