अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: क्या हम वाकई महिलाओं की आवाज़ को सुरक्षित कर रहे हैं?
हर साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हम महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाते हैं, उनके अधिकारों की बात करते हैं, और समानता की दिशा में नए कदम उठाने का संकल्प लेते हैं। लेकिन क्या सच में दुनिया भर की महिलाओं को अपनी आवाज़ उठाने की आज़ादी मिली हुई है?

इस सवाल का जवाब अफगानिस्तान में Radio Begum के साथ हो रही घटनाओं में छिपा है।
Radio Begum: महिलाओं की आवाज़ को दबाने की कोशिश?
सोचिए, अगर एक दिन आप रेडियो चालू करें और वहां महिलाओं की आवाज़ बिल्कुल सुनाई ही न दे! अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों की सबसे बड़ी आवाज़ माने जाने वाला Radio Begum एक बार फिर से प्रसारण शुरू करने जा रहा है। लेकिन यह वापसी पूरी तरह स्वतंत्र नहीं होगी—तालिबान ने इसे कड़ी शर्तों के तहत चालू करने की अनुमति दी है।
रेडियो बेगम को क्यों किया गया था बंद?
📌 4 फरवरी 2024 को तालिबान ने रेडियो बेगम पर कई नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाकर इसे बंद कर दिया था।
📌 रेडियो स्टेशन पर आरोप था कि वह विदेशी मीडिया से जुड़े कार्यक्रम बिना अनुमति प्रसारित कर रहा था।
📌 दो कर्मचारियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया था।
अब, रेडियो बेगम ने तालिबान की शर्तों को मानने का वादा किया है, जिसके बाद इसे दोबारा चालू करने की इजाज़त दी गई है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है:
क्या यह रेडियो सच में महिलाओं की आवाज़ को मजबूत करेगा या सिर्फ तालिबान के नियमों के मुताबिक काम करेगा?
महिलाओं की आवाज़ पर बढ़ते प्रतिबंध
तालिबान के 2021 में सत्ता में लौटने के बाद से अफगानिस्तान में महिला पत्रकारों की स्थिति बेहद खराब हो गई।
🚫 12 से अधिक मीडिया संस्थानों को बंद कर दिया गया है।
🚫 जो मीडिया संस्थान काम कर रहे हैं, वहां महिलाओं की भागीदारी खत्म हो चुकी है।
🚫 टीवी पर आने वाली महिलाओं को सिर से पांव तक ढकने का आदेश है।
🚫 रेडियो स्टेशनों ने महिलाओं की आवाज़ तक प्रसारित करनी बंद कर दी है।
यह सिर्फ एक रेडियो चैनल की कहानी नहीं है। यह इस सच्चाई को उजागर करता है कि आज भी दुनिया के कई हिस्सों में महिलाओं को बोलने तक की आज़ादी नहीं है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का उद्देश्य महिलाओं के सशक्तिकरण, समानता और उनके अधिकारों की रक्षा करना है। लेकिन अगर किसी देश में महिलाएं बोल तक नहीं सकतीं, तो फिर सशक्तिकरण की यह लड़ाई अधूरी रह जाती है।
👉 महिलाओं की शिक्षा पर रोक
👉 काम करने पर पाबंदी
👉 मीडिया और सार्वजनिक जीवन से बाहर किया जाना
क्या यह वही दुनिया है जिसका सपना अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दौरान देखा जाता है?
क्या Radio Begum महिलाओं की आवाज़ बन पाएगा?
अब बड़ा सवाल यह है कि रेडियो बेगम की वापसी महिलाओं के लिए नई उम्मीद बनेगी या फिर यह सिर्फ तालिबान के नियंत्रण में चलने वाला एक और मंच बन जाएगा?
✅ अगर यह रेडियो महिलाओं के अधिकारों और उनकी समस्याओं को उठाने में सक्षम रहेगा, तो यह एक बड़ी जीत होगी।
❌ लेकिन अगर यह सिर्फ तालिबान की शर्तों पर चलने वाला मंच बनकर रह गया, तो यह एक और दबी हुई आवाज़ का प्रतीक होगा।
हमारी भूमिका क्या होनी चाहिए?
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हमें यह समझना होगा कि महिला सशक्तिकरण सिर्फ एक दिन का मुद्दा नहीं, बल्कि एक सतत प्रयास है।
हमें उन महिलाओं के लिए आवाज़ उठानी होगी, जिनकी आवाज़ दबाई जा रही है।
स्वतंत्रता, शिक्षा और समानता के लिए हमें मिलकर काम करना होगा।
अगर आज हम चुप रहे, तो यह अन्याय और बढ़ता जाएगा।
आपका क्या सोचना है? क्या रेडियो बेगम महिलाओं की असली आवाज़ बन पाएगा या तालिबान के नियमों के आगे झुक जाएगा? अपनी राय कमेंट में बताएं!
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