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    social media expense to be included under elections

    आचार संहिता: सोशल मीडिया भी होगा दायरे में
    पेड प्रमोशनल पोस्ट और विज्ञापनों का खर्च भी जुड़ेगा


    मंदसौर। विधानसभा चुनावों में पहली बार राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के चुनावी खर्च में सोशल मीडिया पर होने वाले पेड प्रमोशनल पोस्ट और विज्ञापनों का खर्च शामिल होगा। साथ ही मोबाइल पर पार्टियों और प्रत्याशियों की ओर से आने वाले बल्क एसएमएस और बल्क वॉइस मैसेज के लिए हुए भुगतान भी चुनावी खर्च में जोड़े जाएंगे। केंद्रीय निर्वाचन आयोग मेटा व एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ टेलीकॉम कंपनियों से भी इसकी जानकारी ले रहा है। आचार संहिता लगते ही पार्टियों के आधिकारिक हैंडल और पेज की निगरानी शुरू कर दी गई थी। प्रत्याशियों की निगरानी 21 अक्टूबर के बाद नामांकन दाखिल होने के दिन से शुरू की जा रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार सोशल मीडिया पोस्ट को चुनाव खर्च में शामिल किया गया था।


    फेसबुक/इंस्टाग्राम पर सबसे ज्यादा
    फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सबसे ज्यादा चुनाव प्रचार सामग्री इन्हीं दोनों पर है। फेसबुक पर कार्टून, लिखित कंटेंट, तस्वीरें, वीडियो सभी तरह के प्रचार पोस्ट और विज्ञापन आ रहे हैं। इंस्टाग्राम पर प्रचार वाले सर्वाधिक शॉर्ट वीडियो पोस्ट आ रहे हैं। पार्टियों और प्रत्याशियों द्वारा घोषित अकाउंट, पेज निगरानी के दायरे में हैं। व्हाट्सएप की निगरानी सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण है। शिकायत वाले नंबर और प्रत्याशियों द्वारा घोषित वाट्सएप नंबर ही निगरानी में हैं। इसे अलावा गुगल की बात करें तो यहां सर्च की जाने वाली वेबसाइटों पर गूगल एड दिखाई देते हैं।यू-ट्यूब वीडियो के बीच स्पांसर्ड एड वीडियो के जरिए प्रचार हो रहा है। इसके अलावा ट्वीटर पर भी प्रचार-प्रसार हो रहा है।


    फेक न्यूज को ट्रेस करने 13 कैटेगरी
    सोशल मीडिया पर फेक न्यूज को ट्रेस करने के लिए आयोग ने 13 कैटेगरी बनाई हैं। इनसे जुड़ा कंटेट दिखते ही उसे हटाने के लिए संबंधित प्लेटफॉर्म को सूचित किया जाएगा। उसे 3 घंटे में रिस्पॉन्स देना होगा। इनमें ईवीएम, वोटर सूची, आयोग की निष्पक्षता, ओपिनियन व एग्जिट पोल, मतदान की गोपनीयता आदि शामिल हैं।
    सभी राज्यों में कमेटी का गठन
    दरअसल, इस बार चुनाव प्रचार फिजिकल कम और वर्चुअल अधिक हो रहा है। लिहाजा, केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने सभी चुनावी राज्यों में मीडिया सर्टिफिकेशन मॉनिटरिंग कमेटी का गठन किया है। राज्यस्तर पर 20 विशेषज्ञों की और हर जिले में 4-5 लोगों की टीम काम कर रही है।

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