International women’s day exclusive

क्या महिलाओं को समान भागीदारी मिल रही है?

क्या आप जानते हैं कि देश की आधी आबादी महिलाएं हैं, लेकिन नीति निर्माण में उनकी हिस्सेदारी नगण्य है? महिला सशक्तिकरण पर कई चर्चाएँ होती हैं, लेकिन जब फैसले लेने की बात आती है, तो महिलाएं कहां हैं? क्या हमारा लोकतंत्र उन्हें केवल वोट देने और योजनाओं का लाभ उठाने तक सीमित रखेगा, या उन्हें फैसले लेने का हक भी मिलेगा?

महिला दिवस के इस खास मौके पर, आइए नजर डालें कि नीति निर्माण में महिलाओं की स्थिति कितनी कमजोर है और इसे सुधारने के लिए क्या किया जा सकता है।

भारत में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी की सच्चाई

आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, लेकिन जब बात राजनीति और नीति निर्माण की आती है, तो आंकड़े चौंकाने वाले हैं:

मध्य प्रदेश की स्थिति और भी चिंताजनक है:

मध्य प्रदेश में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी

क्या यह पर्याप्त है? क्या एक-दो महिला नेताओं को आगे लाकर महिला सशक्तिकरण का दिखावा किया जा सकता है?

‘लाड़ली बहना योजना’ बनाम असली सशक्तिकरण

मध्य प्रदेश में महिलाओं के लिए ‘लाड़ली बहना योजना’ चलाई जा रही है, जिसमें महिलाओं को हर महीने ₹1250 की आर्थिक सहायता दी जाती है। यह पहल महिलाओं को कुछ राहत तो देती है, लेकिन असली सवाल यह है:

क्या केवल पैसों से महिलाओं को सशक्त किया जा सकता है? या असली बदलाव तभी आएगा जब महिलाएं खुद नीति निर्माण की प्रक्रिया में शामिल होंगी?

सशक्तिकरण का मतलब सिर्फ योजनाओं का लाभ लेना नहीं, बल्कि खुद योजनाएं बनाना और अपने भविष्य के फैसले खुद लेना है।

महिलाओं की अनदेखी क्यों?

अगर महिलाएं संसद और विधानसभाओं में नहीं होंगी, तो उनकी समस्याओं पर कौन आवाज उठाएगा? यही कारण है कि:

जब तक महिलाओं की भागीदारी नहीं बढ़ेगी, तब तक उनके अधिकारों से जुड़े फैसले भी उनके पक्ष में नहीं लिए जाएंगे।

महिलाओं को क्यों चाहिए बराबरी?

कई बार यह तर्क दिया जाता है कि “महिलाओं को राजनीति में रुचि नहीं है।” लेकिन वास्तविकता यह है कि उन्हें उचित अवसर ही नहीं दिए जाते:

यह महिलाओं को केवल प्रतीकात्मक रूप से दिखाने की राजनीति है, असली बदलाव नहीं।

आगे क्या? महिलाओं की भागीदारी कैसे बढ़े?

अगर हमें महिलाओं को सशक्त करना है, तो कुछ ठोस कदम उठाने होंगे:

आपकी भूमिका क्या है?

आज महिला दिवस के मौके पर, एक सवाल खुद से पूछिए – क्या हम सच में महिलाओं को बराबरी दे रहे हैं? या सिर्फ उन्हें “प्रेरणा” और “संस्कार” की मूर्तियां बनाकर छोड़ रहे हैं?

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-रिपोर्ट-प्रियंका रामचंदानी

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