गुरुग्राम में एक इलाका है- बलियावास। यहां के स्पोर्ट्स क्लब के एक कॉर्नर पर लकड़ी का घर यानी वुडन हट बनाया जा रहा है। इसे बना रहे हैं विजय मिश्रा और चेतन पवार।

विजय उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं और चेतन पंजाब से। दोनों ‘वुडन हैबिटेट’ नाम की कंपनी के को-फाउंडर हैं। इनकी कंपनी लकड़ी का घर बनाती है।

इन दोनों से मिलने और पूरे बिजनेस मॉडल को समझने के लिए मैं गुरुग्राम पहुंचा हूं।

विजय लकड़ी से बने घर को दिखा रहे हैं।

विजय लकड़ी से बने घर को दिखा रहे हैं।

औपचारिकता के बाद मैं गौर से उनके काम को देख रहा हूं। मुझे देखकर विजय कहते हैं, ‘ये जो आप लकड़ी देख रहे हैं, वो कैनेडियन पाइन ट्री की है।

भारत में यह कनाडा और फिनलैंड से आती है।

इसे बनाना थोड़ा कॉस्टली है। हर कोई इसे इंस्टॉल नहीं कर सकता है। यह इको फ्रेंडली है। इसे बनाने में न तो पानी की खपत होती है और न ही इससे एन्वायर्नमेंट को नुकसान होता है।’

तस्वीर में विजय और चेतन हैं।

तस्वीर में विजय और चेतन हैं।

मैं चौंकते हुए पूछता हूं- लकड़ी काटकर आप घर बना रहे हैं, फिर इको फ्रेंडली किस बात की…?

विजय मुस्कुराने लगते हैं। बताते हैं, ‘जहां से ये लकड़ियां इंपोर्ट होकर आती हैं, वहां के कुछ रूल्स हैं। यदि आप एक पेड़ काटेंगे, तो इसके बदले में आपको 10 पेड़ पहले लगाने होंगे। भारत जैसी बात नहीं। जब मन किया किसी प्रोजेक्ट के नाम पर धड़ल्ले से लाखों पेड़ काट दिए और अफसोस तक नहीं हुआ।’

इस वुडन हट से कुछ ही दूरी पर एक रेस्टोरेंट बना है। ये पूरी तरह से लकड़ी का ही है। इसे विजय की कंपनी ने तैयार किया है।

कारीगर लकड़ी का घर बना रहे हैं।

कारीगर लकड़ी का घर बना रहे हैं।

… तो इसकी शुरुआत कैसे की?

पूछने पर विजय कुछ देर चुप हो जाते हैं। फिर कहते हैं, ‘आपके सवाल की वजह से मैं कुछ देर के लिए पुराने दिनों में लौट गया था। लोअर मिडिल क्लास फैमिली से हूं। पापा का छोटा-सा ट्रांसपोर्ट का बिजनेस था, लेकिन 2009 का साल आते-आते सब कुछ बिक गया।

2004 में जहां हमारे पास 7-8 गाड़ियां थीं, 2009 आते-आते एक भी नहीं बचीं।

हम कर्ज में चले गए। घर की स्थिति बहुत खराब हो गई। ये कंडीशन तकरीबन 5 साल तक बनी रही।

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