सुवासरा। सीतामऊ अनुविभाग में स्थित 110 साल पुराने ‘शासकीय 52 क्वार्टर’ को लेकर एक बार फिर बड़ा खुलासा सामने आया है। मीडिया में प्रकाशित खबर के बाद तहसीलदार द्वारा की गई जांच ने प्रशासन की कार्यशैली पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

पुलिसकर्मी के सरकारी क्वार्टर में दो साल से चल रही थी संदिग्ध गतिविधियां

सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि एक पुलिसकर्मी के नाम पर दर्ज सरकारी क्वार्टर में वह पिछले दो वर्षों से रह ही नहीं रहा, लेकिन उस क्वार्टर में अवैध गतिविधियां लगातार संचालित हो रही थीं। पड़ोसी किरायेदारों ने स्वयं जांच अधिकारी को इसकी जानकारी दी, बावजूद इसके तहसीलदार की रिपोर्ट में इसका कोई ठोस उल्लेख नहीं है।

जांच रिपोर्ट में खामियां ही खामियां

तहसीलदार द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट कई गंभीर त्रुटियों से भरी हुई है।

52 क्वार्टर में से 29 अवैध कब्जे

शासकीय रिकार्ड के अनुसार 52 क्वार्टर भवन में वर्तमान में 48 क्वार्टर मौजूद हैं, जिनमें से 29 क्वार्टर अवैध रूप से कब्जे में पाए गए हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि वर्षों से स्थानीय प्रशासन ने कभी गंभीरता से इस भवन की जांच तक नहीं की।

तहसीलदार की लापरवाही या मिलीभगत?

इतने बड़े स्तर पर अनियमितताएं सामने आने के बाद भी तहसीलदार की रिपोर्ट अधूरी और पक्षपातपूर्ण नज़र आती है। क्या तहसीलदार को दो वर्षों तक इन अवैध गतिविधियों की भनक तक नहीं लगी, या जानबूझकर अनदेखा किया गया? यह एक बड़ा सवाल है, जो पूरे प्रशासन की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।

स्थानीय प्रशासन की चुप्पी क्यों?

सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि जिस क्वार्टर में अवैध गतिविधियां हो रही थीं, उसके पास ही सुवासरा थाना प्रभारी का आवास है। फिर भी, कोई भी पुलिस या प्रशासनिक अधिकारी सूचना नहीं जुटा सका

जरूरतमंद कर्मचारी हो रहे हैं परेशान

इस भ्रष्ट व्यवस्था का खामियाजा जरूरतमंद शासकीय कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है, जिन्हें शासकीय आवास के बजाय प्राइवेट मकानों में मंहगे किराये पर रहना पड़ रहा है।


जिम्मेदार क्या कह रहे हैं?

🗣️ मोहित सिनम, प्रभारी तहसीलदार, सुवासरा:
“जांच रिपोर्ट बनाकर वरिष्ठ अधिकारियों को भेज दी गई है, आगे की कार्यवाही उनके निर्देशानुसार होगी।”

🗣️ शिवानी गर्ग, एसडीएम, सीतामऊ:
“शासकीय 52 क्वार्टर भवन की जांच रिपोर्ट मिल चुकी है। जल्द ही अवैध रूप से रहने वालों को बेदखल कर बाजार दर के हिसाब से वसूली की जाएगी।”

इस पूरी घटना ने एक बार फिर साबित किया है कि यदि मीडिया द्वारा आवाज न उठाई जाए तो ऐसे मामले दबाए ही रह जाते हैं। शासकीय क्वार्टरों की बंदरबांट, प्रशासन की लापरवाही और अधिकारियों की निष्क्रियता ने सुवासरा की जनता को सोचने पर मजबूर कर दिया है – आखिर कब तक चलेगा यह खेल?

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