
2 गुना कीमत पर लिए थे ठेके, अब पहली किश्त भरने में छूट रहे पसीने, एक्साइज के नोटिस और जब्ती की चेतावनी से मचा हड़कंप
मंदसौर।
शराब के ठेके लेना शायद कभी इतना “नशे से बाहर” अनुभव नहीं बना था। मंदसौर जिले में शराब ठेकेदारों ने इस बार दो गुनी कीमत पर दुकानें झपट लीं — मगर अब सरकार की किश्त वसूली ने उनके होश उड़ा दिए हैं।
2025-26 में 49.6% अधिक राजस्व लक्ष्य के लिए 85 दुकानों के ठेके 251 करोड़ में दिए गए, मगर अब ठेकेदार किश्त चुकाने से पहले ही कराह उठे हैं। 8 दुकानों पर तो पहले ही 1.14 करोड़ की किश्त बाकी है — और अब एक्साइज विभाग ने लाइसेंस निरस्त करने की नोटिसें जारी कर दी हैं।
महंगाई की ‘नीलामी’ अब पसीने की ‘किश्त’ में बदल गई
इस बार ठेके ऐसे उठाए गए जैसे ठेके नहीं, सोने की खान बिकी हो। एक ठेके की कीमत 277% तक उछली। मगर शराब की इस महंगी जुगाड़ के पीछे अब घाटे की गर्मी महसूस की जा रही है। न लाभांश बचा, न साहस। एक्साइज की टर्म्स अब ठेकेदारों को नींद से ज्यादा जगाए हुए हैं।
समझिए हो क्या रहा है:
- बोली में बेतहाशा बढ़ोतरी:
कई दुकानों पर 200 से 300% तक बोली बढ़ी — अब ठेकेदार समझ नहीं पा रहे ये फायदा था या फंदा। - एक्साइज विभाग सख्त:
जिन दुकानों की किश्तें रुकी हैं, वहां लाइसेंस रद्दीकरण के नोटिस चिपका दिए गए हैं। न चुकाने पर जब्ती की नौबत। - सरकारी नीति सवालों में:
क्या यह लक्ष्य आधारित नीति (बिना मार्केट स्टडी के) बाजार को डुबाने का रास्ता नहीं?
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‘लालच, लापरवाही और लाचारगी’ की तिकड़ी
इस पूरी कहानी में तीन पात्र हैं — सरकार, जिसने लक्ष्य बढ़ा दिए; ठेकेदार, जो लालच में सब भूल बैठे; और अब आमजन, जो या तो महंगे शराब के दाम भुगतेगा या अवैध शराब के खतरे।
शराब नीति क्या महज राजस्व बढ़ाने की होनी चाहिए या ज़मीनी हकीकतों से जुड़ी — ये बहस मंदसौर जैसे ज़िलों में आज प्रासंगिक हो उठी है
बड़े सवाल सवाल:
क्या सरकार को बोली की अधिकतम सीमा तय नहीं करनी चाहिए थी?
ठेकेदारों को अब घाटा हुआ तो क्या अगली बार सिंडिकेट या मिलीभगत से बाजार तोड़ेंगे?
क्या शराब दुकानों की यह स्थिति नकली शराब कारोबार को बढ़ावा नहीं देगी?