
अवैध धर्मशाला अब भी जस की तस, न्याय माँगने वाला सलाखों के पीछे
मंदसौर, मध्य प्रदेश।
क्या किसी नागरिक को अपनी ज़मीन बचाने और न्याय की माँग करने की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी कि उसे जेल जाना पड़े? मंदसौर के दलौदा क्षेत्र में रहने वाले पन्नालाल सेन के साथ यही हुआ — जिनकी कहानी आज पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर रही है।
क्या है पूरा मामला?
ग्राम लाला खेड़ा की सरकारी ज़मीन (सर्वे नं. 531, रकबा 3.02 हेक्टेयर) पर एक अवैध धर्मशाला का निर्माण हुआ। पन्नालाल सेन ने इसकी शिकायत की और अपने खर्च पर न्यायिक लड़ाई शुरू की।
26 जून 2025 को तहसीलदार ने आदेश दिया कि यह निर्माण अवैध है और इसे हटाकर पंचायत को सौंपा जाए। लेकिन आदेश को अमल में लाने में प्रशासन ने कोई तत्परता नहीं दिखाई।
“केर के पत्ते” से कलेक्टर दरबार तक
पन्नालाल ने प्रशासन की निष्क्रियता के खिलाफ अनोखा विरोध चुना — केर के पत्ते पहनकर कलेक्टर जनसुनवाई में पहुंचे। यह प्रतीक था कि एक आम आदमी को अपनी ही ज़मीन बचाने के लिए किस हद तक जाना पड़ रहा है।
कलेक्टर ने 3 दिन में समाधान का आश्वासन दिया… लेकिन 7 दिन बीत गए, कुछ नहीं हुआ।
प्रश्न पूछना पड़ा भारी – जेल भेजे गए पन्नालाल और उनके बेटे
जब पन्नालाल समाधान न मिलने पर दलौदा तहसील पहुँचे और सवाल किया कि “आदेश का पालन क्यों नहीं हुआ?” तो अधिकारियों ने पुलिस बुला ली।
धारा 151 और BNS 170 के तहत पन्नालाल और उनके दोनों बेटों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
बीमार पत्नी और बेसहारा पशु – न्याय की सजा भुगतता परिवार
पन्नालाल की पत्नी गंभीर रूप से बीमार हैं और उसी दिन उन्हें अस्पताल ले जाना था। अब घर में कोई नहीं – ना इलाज करवाने वाला, ना पशुओं को चारा देने वाला।
अवैध निर्माण जस का तस – भूमाफियाओं का खेल जारी
जिस अवैध धर्मशाला को हटाने का आदेश 26 जून को दिया गया था, वह आज भी वही खड़ी है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि एक “दलाल डॉक्टर” पूरे मामले में भूमाफियाओं के एजेंट की भूमिका निभा रहा है – निर्माण भी उसी ने कराया और अब पंचायत को सौंपने में भी अड़ंगे डाल रहा है।
बड़ा सवाल – क्या पन्नालाल अकेले हैं? या ये पूरे सिस्टम का पतन है?
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही, न्यायिक निष्पादन और आम जनता की आवाज़ दबाने की गंभीर कहानी है।
क्या अब सवाल पूछना अपराध हो गया है?