दिलजीत दोसांझ के धमाकेदार शो के बाद अब सभी की नजरें अरिजीत सिंह के इंदौर में होने वाले भव्य कॉन्सर्ट पर टिकी हैं। 19 अप्रैल को होने वाले इस शो की टिकट दरें सामने आ चुकी हैं और बुकिंग भी शुरू हो गई है। बताया जा रहा है कि यह इंदौर का अब तक का सबसे महंगा शो होगा। लेकिन हैरानी की बात यह है कि नगर निगम को अब तक आयोजकों से मंजूरी के लिए कोई आवेदन नहीं मिला है, और सबसे बड़ा सवाल—क्या करोड़ों की कमाई करने वाले इस आयोजन से वसूला जाने वाला मनोरंजन कर वाकई सरकारी खजाने तक पहुंचेगा?

इंदौर का सबसे महंगा शो क्यों?

अरिजीत सिंह के इस शो में वीवीआईपी लाउंज समेत डायमंड, प्लेटिनम, गोल्ड और सिल्वर फैन सीटें रखी गई हैं। टिकट की कीमत 3,500 रुपये से लेकर 49,999 रुपये तक है। आयोजन से अनुमानित 15 करोड़ रुपये की कमाई होगी।

मनोरंजन कर को लेकर क्या कह रहा नगर निगम?

नगर निगम की अपर आयुक्त लता अग्रवाल के मुताबिक, चार दिन पहले आयोजकों को नोटिस जारी किया गया था, लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं आया है। आयोजकों ने अब तक अनुमति के लिए आवेदन भी नहीं दिया है। यदि वे टैक्स जमा नहीं करते, तो उन्हें इवेंट की अनुमति नहीं दी जाएगी।

दिलचस्प बात यह है कि ऑनलाइन टिकट बुकिंग साइट पर टिकट राशि के साथ मनोरंजन कर जोड़ा जा रहा है, लेकिन क्या यह वाकई नगर निगम तक पहुंचेगा? उदाहरण के लिए, डायमंड टिकट (44,999 रुपये) पर 4,406 रुपये का मनोरंजन कर और 3,993 रुपये की बुकिंग फीस जोड़ी जा रही है, जिससे कुल राशि 60,399 रुपये बन रही है।

आम आदमी को यह छूट क्यों नहीं मिलती?

यहां बड़ा सवाल उठता है कि जब आम जनता से जुर्माने और करों की वसूली में नगर निगम इतनी सख्ती दिखाता है, तो इन बड़े आयोजनों को विशेष सुविधाएं क्यों दी जाती हैं? क्या कोई आम नागरिक अपनी मनमर्जी से टैक्स भरने में देरी कर सकता है? बिजली का बिल न भरने पर तुरंत कनेक्शन काट दिया जाता है, लेकिन करोड़ों के मनोरंजन कर को लेकर निगम सिर्फ नोटिस जारी कर चुप बैठा रहता है।

इससे पहले भी हो चुका विवाद

यह कोई पहला मामला नहीं है जब इंदौर में बड़े शो को लेकर कर विवाद हुआ हो।

क्या प्रशासन बड़े आयोजनों पर मेहरबान है?

मनोरंजन कर वसूली को लेकर निगम की नरमी सवाल खड़े करती है। छोटे दुकानदारों और आम करदाताओं को बिना मोहलत दिए टैक्स चुकाने के लिए मजबूर किया जाता है, लेकिन बड़े आयोजकों को बार-बार नोटिस देकर समय दिया जाता है। क्या प्रशासन बड़े आयोजनों पर जानबूझकर मेहरबान है, या फिर मनोरंजन कर की सही वसूली अब भी एक मज़ाक ही बनी हुई है?

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