हार तो निश्चित थी लेकिन फिर भी कांग्रेस की कमजोर बागडोर से उसके मतों में लगी सेंध कांग्रेस का अनुशासन हुआ छिन्न – भीन्नअब यदि सुभाष सोजतिया को आगे आने की मांग उठती है तो आश्चर्य नही होता 
मन्दसौर । मन्दसौर नगर पालिका में अध्यक्ष पद पर श्रीमती रमादेवी बंशीलाल गुर्जर एव उपाध्यक्ष पद पर श्रीमती नम्रता प्रितेश चावला चुनी गई। दोनो बीजेपी से है। दोनो पदों के लिए हुए मतदान में कांग्रेस की फुट का नजारा स्पष्ट देखने को मिला। अध्यक्ष पद के चुनाव में कांग्रेस के पार्षदों की संख्या से कांग्रेस की उम्मीदवार पिंकी कमलेश सोनी को दो मत कम मिले जबकि उपाध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार तरुण शर्मा को एक मत कम मिला। नगर पालिका के पदाधिकारियों के हुए इस चुनाव में कांग्रेस का छिन्न -भीन्न हुआ अनुशासन एक उदाहरण छोड गया है। इसके पूर्व पार्षद पद के हुए चुनाव में कांग्रेस के कुछ महत्वपूर्ण नेता चुनाव हार गए जो चर्चा में है ।मन्दसौर नगर पालिका के पार्षद पद के हुए चुनाव में कांग्रेस के 8 , बीजेपी के 29 व 3 निर्दलीय पार्षद चुने गए । अध्यक्ष के चुनाव में बीजेपी की उम्मीदवार श्रीमती गुर्जर को 34 व कांग्रेस की उम्मीदवार पिंकी सोनी को 6 मत मिले। इस प्रकार उपाध्यक्ष के चुनाव में बीजेपी की उम्मीदवार नम्रता चावला को 33 मत मिले जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार तरुण शर्मा को 7 मत मिले । इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस में जबरदस्त फुट रही। इस चुनाव में कांग्रेस की स्थिति तो उम्मीदवार मैदान में उतारने जैसी भी नही थी क्योंकि 40 पार्षदों वाली मन्दसौर नगर पालिका में कांग्रेस के मात्र 8 पार्षद ही चुनाव जीते है जबकी बीजेपी 29 की स्थिति देख कांग्रेस तो सोच भी नही सकती थी कि उसका उम्मीदवार कोई चमत्कार बता पाएगा लेकिन हां अध्यक्ष पद को लेकर बीजेपी में खिंचतान की स्थिति को सुन शायद यह सोच हो कि कांग्रेस को लाभ मिल जाएगा लेकिन इसके लिए कांग्रेस की कोई बिसात तो ठीक वह अपने ही पार्षदों में अनुशासन नही रख पाई और दोनो पदाधिकारियों के चुनाव में कांग्रेस के वोट में सेंध लग गई जो हंसी का पात्र तो ठीक एक उदाहरण बन गई ।दूसरी और भारी बहुमत लेकर मन्दसौर पालिका के इस चुनाव विजयश्री प्राप्त की बीजेपी ने और अध्यक्ष पद को लेकर भले ही पार्टी में दावेदारी की हो , मेहनत मशक्कत की हो लेकिन अनुशासन में सभी पार्षद एक जुट बंधे रहे। बीजेपी के नेतृत्व में जहां सांसद श्री सुधीर गुप्ता, वरिष्ठ विधायक श्री यशपालसिंह सिसोदिया, बीजेपी जिला अध्यक्ष श्री नानलाल अटोलिया, पर्यवेक्षक संगीता सोनी , श्री नेमा जी के अलावा संगठन के प्रमुख श्री विजय अठवाल की महत्वपूर्ण भूमिका से बीजेपी का तानाबाना जस का तस रहा।इससे एक बात और स्पष्ट है कि जो 3 निर्दलीय चुनाव जीत कर आए है उनमें 2 बागी है। दोनो दलों की यह स्थिति है। एक को बीजेपी ने उम्मीदवार घोषित करने के बाद नामांकन भरने के समय फार्म भरने से मना कर दिया था जबकि एक कांग्रेस के ब्लाक कांग्रेस अध्यक्ष मो हनीफ शेख के सामने चुनाव मैदान में डट गए क्योंकि उन्हें मौका नही मिला। तीसरे उम्मीदवार वे निर्दलीय मैदान में थे जो नगर के प्रमुख समाज सेवी होकर बीजेपी के महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके है। अब अध्यक्ष , उपाध्यक्ष के चुनाव में तीनों निर्दलीयों के मत बीजेपी को गए तो कोई आश्चर्य नही लेकिन कांग्रेस के 8 मतों में बीजेपी की सेंध मारी से स्वयं कांग्रेस के निष्ठावान पार्षद आश्चर्य में होते है तो कोई आश्चर्य नही होगा। कांग्रेस संगठन के लिए यह अनुशासन चिंता जनक है या नही वही जाने।पार्षद पद के चुनाव में मंत्री श्री जगदीश देवडा, सांसद श्री सुधीर गुप्ता , वरिष्ठ विधायक श्री यशपालसिंह सिसोदिया की महत्वपूर्ण भूमिका ने बीजेपी को अभूतपूर्व विजयश्री दिलवायी वही पूर्व मंत्री व वरिष्ठ नेता श्री कैलाश चावला, हुडको के डायरेक्टर  व किसान नेता श्री बंशीलाल गुर्जर, बीजेपी जिला अध्यक्ष श्री नानलाल अटोलिया व रणनीतिकार जिला महामंत्री श्री विजय आठवाल , डायरेक्टर खाध्य निगम , श्री अरविंद सारस्वत , श्री अजय आसेरी , श्री राजेश दीक्षित , श्री गणपतसिंह आंजना , श्री मदनलाल राठौड़ की मेहनत से बीजेपी की जीत आशा से अधिक चर्चा में रही है। अब अगला पदों का पड़ाव तो आने वाला है पालिका में विभिन्न सभापतियों के पदों का। ये पद भी 270 करोड़ वार्षिक बजट की नगर पालिका में कोई कम महत्व नही रखते है। विकास के कामो का एक प्रकार से बिछोना बिछाया जा सकता है। कोई 80 करोड़ रु से अधिक खर्च होने के बावजूद पेयजल समस्या से जूझ रहे नागरिकों को जादुई चिराग की तरह यह समस्या हल कर नागरिकों को दोनो समय नलों से पर्याप्त जल सप्लाय किया जा सकता है जिसके लिए नई परिषद की दिशा व मार्ग की प्रतीक्षा हर किसी को रहेगी । और एक समस्या है जर्जर सड़के जिनको इन्तजार है नई परिषद की हरी झंडी का। नगर पालिका चुनाव जो माहौल कांग्रेस को अच्छा दिख रहा था उसे कांग्रेस के नेता ही संभाल नही पाए । कांग्रेस के उम्मीदवारों से लेकर चुनाव प्रचार की बागडोर तक का प्रभाव पूरे चुनाव में कही देखने को नही मिला। ऐसा लग रहा था मानो कांग्रेस तो यह समझ रही है कि उसके लिए सत्ता की थाली परोस कर जनता दे रही है। यानी वह यह समझ रही होगी कि उसके भाग्य से छींका टुटा जाएगा जो नही हुआ लेकिन इतनी तगड़ी पराजय का अनुमान भी किसी को नही था और कांग्रेस को तो जीत के सपने दिख रहे होंगे। इस चुनाव में ऐसी पराजय के बाद भी कांग्रेस ने अध्यक्ष, उपाध्यक्ष पद के चुनाव के लिए सबक नही लिया। राजनीतिक विश्लेषकों में तो चर्चा है कि कांग्रेस को बगावत से अपनी खिल्ली उड़ाने से तो अच्छा होता वह बीजेपी को अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के चुनाव में वाक ओवर दे देती क्योंकि जब उसके पास तो बहुमत तो था नही उल्टे उसके मत ही टूट गए जिससे उसकी एकता पर खिल्ली उड़ती है या प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है तो क्या गलत है। मंदसौर जिले में हो या पूरे संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस में गुटबाजी हो या फुट लेकिन भानपुरा में कांग्रेस को जिस मजबूती से उसे ताकत देकर नगर पालिका चुनाव हो या जनपद के चुनाव उसमें पूरे अपने दमखम से पूर्व मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ जुझारू  नेता सुभाष सोजतिया कांग्रेस के उम्मीदवारों को जीता कर लाए जो पूरी कांग्रेस के लिए एक उदाहरण है। स्वयं कार्यकर्ताओं में यदि यह बात चर्चा में होकि इन चुनावों में कांग्रेस की लाज रखी है श्री सोजतिया ने और सोजतिया की हो तो कोई आश्चर्य नही। श्री सोजतिया की जुझारूपन व संघर्ष की राजनीति कोई नई नही है । वर्षो पूर्व जब शामगढ़ मार्केटिंग सोसायटी के चुनाव हुए तब से लेकर उनकी एक पहचान बन गई । कांग्रेस के नेता हो या कार्यकर्ता , वे सब मे इसलिए लोकप्रिय हैकी वे सबके लिए समर्पित भाव से काम करते आए है कार्यकर्ताओं में उनके प्रति विश्वास है। अब यदि राजनेतिक गलियारों में यह चर्चा रहती है कि मन्दसौर संसदीय क्षेत्र ही नही बल्कि पूरे मध्य भारत क्षेत्र में कांग्रेस यदि श्री सुभाष सोजतिया को सर्वे सर्वा बना दे और पूरे उनके मार्गदर्शन व निर्देशन में आगामी चुनावों में उम्मीदवारों से लेकर चुनाव लड़ने की रणनीति तक बनाने के लिए उन्हें जिम्मेदारी देबदे तो कोई आश्चर्य नही होगा लेकिन यह कांग्रेस है होता क्या है इसका ईंतजार तो कांग्रेस को भी करना पड़ेगा। लेकिन हा कांग्रेस यदि मन्दसौर जिले की कांग्रेस की बागडोर श्री सोजतिया को सौप देती है तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नए उत्साह का संचार हो सकता है जो कांग्रेस के लिए संकट मोचन बन सकते है। बीजेपी पूरे संसदीय क्षेत्र में स्वायत्त संस्थाओं से लेकर पंचायत चुनाव में चप्पे पर छा गई है । कांग्रेस संगठन कितना मजबूत है और इस क्षेत्र में उसकी कितनी पकड़  है यह इन चुनावों के परिणामों से स्पष्ट है।ऐसी स्थिति में मजबूत विपक्ष की भूमिका को लेकर भी वह चर्चा में रही है तो फिर आगामी चुनावों में हर जोर जुल्म की टक्कर में उसकी स्थिति क्या होगी यह उसे ही तय करना होगा। हा लेकिन कांग्रेस में जान फूंकनी है तो श्री सोजतिया जैसे कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय , संघर्ष शील मेहनती व्यक्ति के हाथों में सोपनी होगी बागडोर। –महावीर अगरवाल

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