मंदसौर। हर साल की तरह इस साल भी औद्योगिक विकास और युवाओं को रोजगार दिलाने के बड़े बड़े दावे किए गए। लेकिन इस साल भी दावे धरे के धरे रह गए। जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का असर भी मंदसौर के जग्गाखेड़ी औेद्योगिक क्षेत्र में देखा जा सकता है जो लगभग 17 सालों में भी आकार नहीं ले पाया है। इधर नीमच की बंद पड़ी सीसीआई फैक्टरी को चालू कराने के लिए भी कोई ठीक से प्रयास नहीं हुए है।
इसी कारण पूरे संसदीय क्षेत्र में औद्योगिक पिछड़ेपन के हालात बने हुए है। इसका सीधा असर रोजगार के अवसरों में कमी के रुप में दिखता है। संसदीय क्षेत्र के मंदसौर-नीमच जिले तीन तरफ से राजस्थान से घिरे हुए है। राजस्थान के प्रतापगढ़, भीलवाड़ा, चित्तौडगढ़़, झालावाड़ व कोटा की सीमाएं संसदीय क्षेत्र को छूती है। राजस्थान के चित्तौडगढ़़, भीलवाड़ा व कोटा में जिस तरह उद्योग का विकास हुआ है उसकी एक झलक भी मंदसौर-नीमच जिले में नहीं मिलती है। संसदीय क्षेत्र की लगभग 22 लाख 50 हजार से अधिक आबादी में से लगभग 70 फीसदी से अधिक लोग कृषि पर ही आश्रित है। शेष 40 फीसदी लोग भी निजी व सरकारी क्षेत्रों में नौकरी कर रहे हैं। आजादी के करीब 70 साल से अधिक बीतने के बाद भी औद्योगिक विकास की गति धीमी है। नीमच, मनासा, गरोठ, मंदसौर में औद्योगिक क्षेत्र बने हैं। तो जावद, भानपुरा, शामगढ़, सीतामऊ व सुवासरा क्षेत्र में औद्योगिक क्षेत्र का अभाव नजर आता है। इन सभी जगहों पर औद्योगिक क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। जबकि नीमच में धामनिया और झांझरवाड़ा में नया औद्योगिक क्षेत्र विकसित हो चुका है। यहां लगभग 200 से अधिक औद्योगिक इकाइयों की स्थापना हो सकेगी। औद्योगिक विकास की गति धीमी होने के कारण पूरे क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी कम है। इसका सीधा असर जिले के विकास और उन्नति पर भी दिखाई देता है।
निजी सेक्टर के लाभ के लिए सीसीआई को कर दिया बंद
नीमच जिले के नयागांव में सीमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का सीमेंट प्लांट संचालित होता था। और यह काफी लाभ में भी चल रहा था। पर बाद में खोर में लगे विक्रम सीमेंट व समीपी राजस्थान की सीमा में लगे सीमेंट प्लांटों को फायदा पहुंचाने के लिए जनप्रतिनिधियों व उद्योगपतियों की मिलीभगत से 1998 से प्लांट बंद कर दिया है। इसे बंद करने का कारण बिजली का बिल बकाया होना बताया गया था। जबकि सीसीआई प्लांट की करोड़ों व अरबों रुपए की संपत्ति हैं। अभी भी सीसीआई को चालू करने के बजाय केंद्र सरकार इस उद्योग को पूर्ण रूप से बंद करने और संपत्ति के विक्रय की कोशिश में जुटी है।
स्लेट पेंसिल उद्योग भी बंद होने की कगार पर
संसदीय क्षेत्र के सिंगोली क्षेत्र में लाल पत्थर और फर्शी की खदानें हैं। इस पत्थर पर आधारित उद्योगों को भी बढ़ावा देने की कोशिश नहीं की गई। इसके चलते पहले जहां काफी खदानों से पत्थर निकलता था अब इनकी संख्या गिनती की रह गई। यहीं हाल मंदसौर व इसके आस-पास स्लेट पेंसिल उद्योग का भी है। विभागीय नियमों की जटिलता और अन्य परेशानियों के चलते ये उ़द्योग भी अब बंद हो रहा है।