मुख्यालय पर तो..आईसीयू से चुनावी मंजर देखा फिर लेट गई कांग्रेस…
भाजपा की बम्फर जीत के बाद कांग्रेस संगठन और बड़े नेताओं के नेतृत्व को लेकर फिर एक बार सवालिया निशान खड़े हो गए ? इस बार जितने का पूरा मौका दस्तूर होने के बावजूद कांग्रेस के खराब प्रदर्शन को लेकर खुद कांग्रेसी सियापे करते नजर आए… नवकृष्ण पाटिल के जिला अध्यक्ष बनने के बाद से ही कई गुटों में बंटी कांग्रेस एक दूसरे को देखते नहीं सुहाती.. एक साथ बीजेपी से लोहा लेने के बजाय कांग्रेस अलग-अलग कबीलों में बंटी दिखी..जिसे संघठन ने एक जाजम पर बिठाने का प्रयास भर नहीं किया.. प्रत्याशी चयन को लेकर भी विरोध जबरदस्त था.. जीतने वाले प्रत्याशियों को नजरअंदाज किया गया.. ज्ञात अज्ञात कारणों के चलते कांग्रेस के बड़े नेता कांग्रेस के एजेंडे को लेकर मैदान में ही नहीं दिखे.. चुनावी प्रबंधन फिसड्डी था..टिकट वितरण को लेकर रुष्ठ उम्मीदवारों को ढंग से मानने के बजाय सब मामला एक दूसरे पर ढोलते रहें.. कि तेरा टिकट फलाने नेता ने कटवाया है… ढीमके नेता के कारण तुम्हारा टिकट कटा..प्रबंधन के ये हाल रहे की पब्लिक इमेज रखने वाले नेता और कार्यकर्ताओं को जनता के बीच में जाकर कांग्रेस का विजन रखने इस लिए इसलिए नहीं चुना गया की उनका कद बड जाता..गफलत में रहकर जीत जाने का भ्रम और इसी भरम में कांग्रेस को जीता जाना मानकर सिंगल श्रेय ले जाने की बचकाना हरकत ने कांग्रेस की वाट लगा दी… कांग्रेस के पास कर दिखाने को लेकर बहुत कुछ था . । चारों तरफ बदइंतजामियां और और अव्यवस्थाओं के मुद्दों को लेकर कांग्रेसी जनता के बीच ना पहुंच पाई और ना ही खुद के नेतृत्व का जनता को यकीन दिला पाई….भाजपा की फेल योजनाओं को पब्लिक के बीच में ले जाने से ही कांग्रेस की जीत का रास्ता आसान हो रहा था लेकिन कांग्रेस ने इसे लेकर कोशिश ही जारी नहीं की… बीजेपी की स्थति भी इस बार चुनाव में ज्यादा अच्छी नहीं थी. .उसका पहली बार प्रबंधन गड़बड़ाया दिखा बावजूद इसके कांग्रेस कुछ नहीं कर पाई..जीत के नखलिस्तान में रहकर श्रेय लूटने वाले नैतिकता की चिड़िया के मद्दे नजर खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेकर संगठन के नेता इस्तीफा देंगे ?

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