
धार्मिक नगरी मंदसौर में नशे का नंगा नाच
मुख्यमंत्री की धार्मिक मंशा पर सिस्टम का वार
एक ओर मुख्यमंत्री मोहन यादव भगवान पशुपतिनाथ लोक के भव्य निर्माण का संकल्प लेकर मंदसौर को एक विश्वस्तरीय धार्मिक तीर्थ के रूप में विकसित करना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर आबकारी विभाग की लापरवाही ने इस सपने पर कालिख पोत दी है। धार्मिक नगरी के नाम पर घोषित शहर में आज शराब माफियाओं की चल रही मनमानी न सिर्फ सरकार की मंशा का मज़ाक है, बल्कि जनता की आस्था पर भी सीधा हमला है।
शराब ठेके मंदिरों, स्कूलों के पास – नियमों की खुलेआम हत्या
मंदसौर को धार्मिक नगरी घोषित करने के बाद स्पष्ट नियम है कि शराब की दुकानें शहर की सीमा से बाहर होंगी। लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके उलट है। आबकारी विभाग के अधिकारी बद्रीलाल दांगी पर आरोप हैं कि उन्होंने ठेकेदारों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए नियमों को तोड़-मरोड़ कर मंदिरों, स्कूलों और अस्पतालों के पास ठेके खुलवाए।
धार्मिक मर्यादा और सामाजिक सुरक्षा की धज्जियाँ उड़ रही हैं — और विभाग मौन है।
झारड़ा और जग्गाखेड़ी – जब महिलाएं सड़क पर आईं
झारड़ा: बस स्टैंड के पास शराब दुकान खुली, तो महिलाओं ने विरोध में सड़क जाम कर दी।
जग्गाखेड़ी: विरोध के दौरान तोड़फोड़, 15 लाख का नुकसान, लेकिन केस दर्ज हुए ग्रामीणों पर — ठेकेदारों पर नहीं।
सूत्रों के अनुसार, आबकारी विभाग अब यह प्रचारित कर रहा है कि यह सब ठेकेदारों की आपसी लड़ाई का परिणाम है — ताकि जनता के आक्रोश को भ्रम में डाला जा सके।
पूर्व विधायक सिसौदिया का तीखा सवाल

पूर्व विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया ने साफ कहा —
“धार्मिक नगरी में मंदिरों के पास शराब दुकानें? क्या प्रशासन अब ठेकेदारों की जेब में है?”
उनका बयान न सिर्फ जनता की भावनाओं का प्रतिबिंब है, बल्कि प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सीधा प्रश्नचिह्न भी।
जनता के सवाल, जो सरकार को सुनने होंगे:
- क्या मंदसौर में शराब से हो रही मौतें सिर्फ माफियाओं की गलती हैं, या सिस्टम भी दोषी है?
- आबकारी विभाग के अधिकारी कब होंगे जवाबदेह?
- क्या धार्मिक मर्यादाओं को ठेकेदारों की सुविधा के लिए कुचला जाएगा?
- क्या भगवान पशुपतिनाथ लोक की पवित्रता अब केवल पोस्टर में बचेगी?
कानून के अनुसार, मध्य प्रदेश एक्साइज विभाग की जिम्मेदारी होती है:
• राज्य में शराब और नशीले पदार्थों के निर्माण, वितरण और बिक्री की निगरानी
• अवैध शराब पर रोक
• ज़हरीली, नकली या टैक्स चोरी वाली शराब की धरपकड़
• लाइसेंस प्रक्रिया की पारदर्शिता
• जनता की शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई
लेकिन मंदसौर में ये विभाग फाइलों में गुम है ?
• न समय पर छापे
• न अवैध ठिकानों की पहचान
• न जनता की सुनवाई
• सिर्फ ठेकेदारों की चुपचाप सेवा!

हर बार पुलिस पकड़े शराब, एक्साइज नदारद क्यों?
गांधीसागर बॉर्डर, भानपुरा की फैक्ट्री या सीतामऊ का हादसा — हर बार कार्रवाई पुलिस करती है।
प्रश्न: क्या एक्साइज विभाग को इनकी भनक तक नहीं लगती?
या फिर वो जानबूझकर पीछे रहता है?
हर बार मौत, हर बार चुप्पी — एक्साइज विभाग बना तमाशबीन
हर बार पुलिस ने मोर्चा संभाला, और आबकारी विभाग अपनी जिम्मेदारी से कन्नी काटता रहा।
ये रवैया सिर्फ गैरजिम्मेदारी नहीं — आम जनता की जान से खिलवाड़ है।
आस्था बनाम व्यवस्था — अब निर्णायक समय है
जब सरकार एक धार्मिक पहचान गढ़ने में जुटी हो, और उसका ही विभाग माफियाओं की कठपुतली बना हो — तो यह केवल भ्रष्टाचार नहीं, विश्वासघात है। मंदसौर की जनता, खासकर महिलाएं अब सवाल कर रही हैं — और यह सवाल केवल शराब का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अस्तित्व का है।
अब वक्त आ गया है कि न्यायपालिका, मीडिया और समाज मिलकर पूछे —
“क्या शराब माफियाओं की सत्ता से ऊपर है भगवान पशुपतिनाथ की नगरी?”
“कब जागेगा विभाग, और कब मिलेगा जनता को न्याय?”