मन्दसौर। मन्दसौर से संबंधित नारी देह व्यापार पर सिहोर वाले शिव महापुराण सुप्रसिद्ध कथा प्रवक्ता पं. श्री प्रदीपजी मिश्रा द्वारा मंदसौर कथा के पूर्व अशोक नगर में मंदसौर नगर में नारी देह व्यापार की टिप्पणी पर उनके विरोध की आवाज उठी थी जिसके लिये उन्होंने बाद में माफी मांगी साथ ही यह स्पष्टीकरण भी दिया कि उन्होंने मंदसौर नगर के लिये नहीं मंदसौर क्षेत्र के लिये कहा था।
जहां तक मंदसौर नगर का प्रश्न है यह वह धार्मिक नगरी है जहां 1-2 मास नहीं बारहों मास धार्मिक आध्यात्मिक आयेाजन, भागवत-रामायण-नानीबाई मायरों आदि कथाओं में जिनमें बढ़ चढ़कर मातृशक्ति भाग लेती रही है इसके अतिरिक्त सुन्दरकाण्ड पाठ भजन कीर्तन-मंदिरों में जहां तहां श्रद्धालुओं द्वारा होते रहते है। नगर में कहीं से भी देह व्यापार जैसे घृणीत कार्य का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता परन्तु इस हकीकत से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि मंदसौर जिले के कतिपय स्थान दलौदा गांव से लगा आक्या उमाहेड़ा, अफजलपुर थाने से लगा गांव झिरकन की टेकरी, मल्हारगढ़, हर्कियाखाल से आगे चल्दू डेरे जो ठीक हाईवे महू-नीमच सड़क किनारे होकर देह व्यापार होता रहता है। पेट की खातिर सड़क किनारे खाट पर बैठी बेटीयों को जब वासना के भूखे भेड़िये ग्राहकों की प्रतिक्षा में घण्टों बैठे हुए देखते है तो उधर से गुजरने वाले सभ्य लोगों की आंखे शर्म से झुक जाती है और झुके भी क्यों नहीं ये बेटियां कोई वस्त्र, आभुषण, साग-सब्जी, फल आदि जड़ वस्तुओं का धंधा नहीं जीते जी अपनी उस देह का जिसका सदुपयोग वह उस परिवार जिसमें उसने जन्म लिया, समाज-राष्ट्र की सेवा में समर्पित कर सकती थी उसे किस प्रकार जिते जी नरक के हवाले कर दिया है, इससे बढ़कर सोचनीय क्या हो सकता है ?
कहने-सुनने-लिखने में इससे बढ़कर हमारे लिये लज्जा शर्म और क्या होगी कि एक तरफ हम 9 दिन तक मॉ भगवती शक्ति की आराधना करते है और कन्याओं-बेटीयों के चरण धोकर उनका चरणामृत लेते है। उनके चरणों के धोये जल के छीटों से घर को पवित्र करते हैं और दूसरी तरफ वे कन्याएं बेटीयां भी तो हैं, जिनके चरणों को पूजा नहीं शरीर को नोंचा जाता है। सम्पूर्ण विश्व में एकमात्र ‘‘यत्र नारिस्य पूज्यंते-तत्र रमन्ते देवता’’ वाले नारी संस्कृति-सम्मान प्रधान देश में आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा ?
प्रश्न यह उठता है कि आजादी के 75 वर्ष होने पर हम अमृत महोत्सव तो मना रहे है परन्तु महिलाओं के देह व्यापार के अभिशप्त जहरीले कलंक को कौन मिटायेगा। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओं स्लोगन कहने-सुनने में जुबान-कानों को तो बहुत अच्छा लगता है परन्तु दूसरी ओर इन्हीं बेटियों को नहीं चाहते हुए भी नरक से बद्तर एक-दो दिन नहीं जीवन भर के लिये बर्बाद होते देखते हैं तो यह देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या कहा जायेगा ?
यह बात हमारी समझ में क्यों नहीं आती कि जो सरकारे स्वयं राजस्व के प्रलोभन में शराब, व्यापार बन्द नहीं करती है और दूसरी ओर जब हम उसके आव्हान पर प्रतिवर्ष शराब बन्दी मद्य निषेध सप्ताह आदि द्वारा शराब व्यापार के विरोध में खड़े हो जाते है तो हम क्यों नहीं महिलाओं के पीड़ादायक इस नारकीय कारोबार के विरूद्ध खड़े हो रहे है।
साधुवाद है तत्कालीन पुलिस कप्तान श्री जी.के. पाठक को जिन्होंने नारी शक्ति की इस पीड़ा को समझा था और उन्होनंे जिले के विभिन्न डेरों से 67 बेटीयों को नारकीय जीवन से मुक्ति दिलाकर मंदसौर के बालगृह अपना घर में आश्रय दिया था। जिसके फलस्वरूप उन सभी बच्चियों को उत्कृष्ट शिक्षा दीक्षा के साथ ही उनमें से 8 बच्चियों की अच्छे परिवारों में वैदिक विधी विधान से खूब धूम-धाम से नगर के प्रबुद्ध, प्रतिष्ठित, सम्पन्न आदि सभी ने उनका विवाहोत्सव को अपनी बेटीयों की शादी से भी ज्यादा उत्साह-उल्लास अंजाम दिया।

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