
मध्य प्रदेश सरकार के जनजातीय कार्य विभाग में विधि सलाहकार (Legal Advisor) की नियुक्ति को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। 21 मार्च 2025 को जारी आदेश के तहत सोनल दरबार की नियुक्ति की गई थी, लेकिन महज सात दिन बाद इसे रद्द कर दिया गया। इस फैसले के पीछे जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह की एक नोटशीट को मुख्य कारण माना जा रहा है, जिसमें उन्होंने सोनल दरबार को अपने विरोधी परिवार से संबंधित बताया था। इस मामले ने राजनीतिक तूल पकड़ लिया है और विपक्ष सरकार पर निशाना साध रहा है।
पहले नियुक्ति, फिर आदेश रद्द – क्यों उठ रहे सवाल?
राजभवन सचिवालय की जनजातीय सेल (Tribal Cell) के लिए नए विधि सलाहकार की नियुक्ति की प्रक्रिया तब शुरू हुई, जब मौजूदा विधि सलाहकार विक्रांत सिंह कुमरे का कार्यकाल समाप्त होने वाला था। इसी प्रक्रिया के तहत 21 मार्च को सोनल दरबार की नियुक्ति का आदेश जारी किया गया, जो 8 अप्रैल से प्रभावी होना था।
हालांकि, जैसे ही यह जानकारी जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह तक पहुंची, उन्होंने उच्च स्तर पर एक नोटशीट भेजकर इस नियुक्ति को रोकने की सिफारिश की। इसके बाद, राजभवन सचिवालय ने आदेश को रद्द कर दिया। इस घटनाक्रम ने सरकारी नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप और पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मंत्री विजय शाह की नोटशीट में क्या था?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मंत्री विजय शाह की कथित नोटशीट में यह तर्क दिया गया कि सोनल दरबार इंदौर संभाग से हैं और उनका संबंध उनके राजनीतिक विरोधी परिवार से है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस पद पर जबलपुर संभाग की किसी महिला को नियुक्त किया जाए ताकि जनजातीय सेल में पूरे प्रदेश का संतुलित प्रतिनिधित्व हो सके।
कार्यकाल बढ़ा दो, लेकिन नियुक्ति रोक दो?
इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए राजभवन के अपर मुख्य सचिव केसी गुप्ता ने कहा कि जनजातीय सेल के लिए तीन नामों के प्रस्ताव भेजे गए थे। इनमें से दो अधिकारियों का कार्यकाल बढ़ा दिया गया, जबकि सोनल दरबार की नियुक्ति को स्थगित कर दिया गया।
इसके तहत, जनजातीय सेल के अध्यक्ष दीपक खांडेकर का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया गया, जिससे वे अब 2026 तक इस पद पर बने रहेंगे। इसी तरह, विषय विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत दीपमाला रावत का कार्यकाल भी बढ़ा दिया गया। लेकिन, सोनल दरबार की नियुक्ति को रोकने का निर्णय कई सवाल खड़े कर रहा है।
क्या यह राजनीतिक दखलंदाजी का मामला है?
इस पूरे विवाद के पीछे राजनीतिक कारण माने जा रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि यदि किसी व्यक्ति की नियुक्ति सिर्फ इसलिए रद्द कर दी जाती है कि वह मंत्री के विरोधी परिवार से है, तो यह सरकारी तंत्र की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की घटनाएं दर्शाती हैं कि सरकारी नियुक्तियों में योग्यता की बजाय राजनीतिक समीकरणों को प्राथमिकता दी जा रही है। इससे न केवल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर नकारात्मक असर पड़ता है, बल्कि शासन की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े होते हैं।
क्या आगे कोई बदलाव संभव है?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला यहीं खत्म नहीं होगा। अगर इस फैसले पर दोबारा विचार किया जाता है या न्यायिक हस्तक्षेप होता है, तो सोनल दरबार की नियुक्ति फिर से बहाल हो सकती है। वहीं, सरकार की ओर से इस पर कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है कि आगे क्या निर्णय लिया जाएगा।
मध्य प्रदेश सरकार में विधि सलाहकार की नियुक्ति और फिर उसे अचानक रद्द करने का यह मामला सरकार की नियुक्ति प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या यह फैसला योग्यता के आधार पर हुआ या फिर राजनीतिक कारणों से लिया गया? विपक्ष और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस प्रकार की घटनाएं सरकारी व्यवस्था की निष्पक्षता पर संदेह पैदा करती हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस फैसले को चुनौती दी जाती है या फिर सरकार इसे लेकर कोई नया स्पष्टीकरण जारी करती है।