सुवासरा (नि.प्र.) भारत देश यूं ही महान नहीं कहलाया है भारत को महान कहने के पीछे भी बड़ी सोच हे , भारत का सेनिक युद्ध में शहीद हो जाता हे तो काढ़ते हे वीरगति को प्राप्त हो गया है तो उसे भारत में शहीद का दर्जा दिया जाता है ऐसे योद्धाओं को महापुरुषों के नाम के साथ सम्मान के साथ याद किया जाता है भारत में सैनिक जब सेना में जाता है तो उसका परिवार उसे यह कह कर भेजता है कि वतन के लिए जा रहा है जबकि विदेश में वेतन के लिए जाता है देश में वतन विदेश में वेतन यही बड़ा फर्क है उक्त उद्गार मालव माटी के संत श्री पंडित कमलकिशोरजी नागर ने भागवत कथा के छठे दिन व्यक्त किये , श्री नागर ने सरल स्वभाव में समझाते हुए कहा कि विदेश में लोग न जाने क्या क्या देखने जाते हैं बल्कि भारत की पहचान हरिद्वार व गंगा माता के साथ स्वर्ग के द्वार से होती हैं ऋषिकेश , बद्रीधाम के ऊपर अलकनंदा नदी के पास से स्वर्ग का रास्ता है यही कारण है कि भारत में व्यक्ति मरता है तो पता नहीं कहां जाता है लेकिन उसके मरने के बाद स्वर्गीय लिखा जाता है यह भारत में ही संभव है विदेश में डेड कहते हैं और इतिश्री कर लेते हैं श्रीनगर ने कहा वक्ता से काम चल जाए तो वक्त को मत बुलाओ वक्ता सस्ता होता हे और वक्त महंगा होता है यह उदाहरण देते हुए कहा कि रावण को भी कई वक्ताओं ने समझाया था की सीता को लौटा दो किंतु रावण ने किसी भी वक्ता की नहीं मानी तो फिर रावण को समझाने समय आया जहां राजा इंद्र भी रावण के यहां पानी भरता था और समय आया तो उसको पानी देने वाला तक नहीं मिला इसलिए समय का इंतजार मत करो जब वक्ता उद्देश्य आपको समझा रहा हो तो उसका सही उपदेश मान लेना चाहिए वहीं श्री नागर ने विधवा नारी के लिए विधवा शब्द हटाने के लिए शासन से अनुरोध किया था और शासन ने भी मान लिया शासन ने विधवा की जगह कल्याणी शब्द लिया और आज भी पंचायतों में विधवा पेंशन की जगह कल्याणी सहायता निधि के नाम से योजना चलाई जा रही है विधवा शब्द ठीक नहीं रहते हैं शब्दों का ही मायाजाल है विधवा शब्द के पीछे न लगाने से विद्वान बन जाता है शब्दों की बड़ी ताकत होती है शब्द जब दवा बन जाए तो ऐसा शब्द बोलो शब्द घाव बन जाए ऐसा ना बोले विधवा कोई अपनी मर्जी से विधवा नहीं बनती बल्कि उनके पति या तो गलत काम में मर जाते हैं या शराब के नशे में , क्रोध में बदला लेने में मर जाते हैं तो कहीं महिला विधवा हो जाती है और विधवाओं का सम्मान करना चाहिए विधवा को विधवा मत कहो कल्याणी कहो , छोटे लोग जल्दी भक्ति के मार्ग में पहुंच जाते हैं बल्कि बड़े लोग भक्ति में नहीं जा पाते एक उदाहरण देते हुए बताया कि पांच का नोट प्रतिदिन मंदिर में चढ़ाया जाता है आरती में चढ़ाया जाता है लेकिन दो हज़ार का नोट कभी मंदिर में नहीं डालते , न ही कथा में , न हीं आरती में , पांच का नोट तो मंदिर और धर्म के मार्ग पर चलता है लेकिन दो हज़ार का नोट धर्म के मार्ग में चलने में परेशानी आती है दो हज़ार का नोट थाना दवाखाना , होटल या बुरे कामो की और ही ले जाता है इसलिए छोटे गांव में रहने वाले व्यक्ति भक्ति में ज्यादा विश्वास करते हैं बड़े शहरों में रहने वाले लोग भक्ति के मार्ग में कम चलते हे , श्रीनागर के शब्दों से श्रोता भाव विभोर हो उठे l