*मानव अधिकारआयोग ने कहा – कमिश्नर, नगर निगम भोपाल बतायें – ऐसा क्यूं ?*

राजधानी भोपाल के हाल बेहाल 

वरिष्ठ पत्रकार डॉ. घनश्याम बटवाल की ख़ास ख़बर

*भोपाल शहर को* साफ-सुथरा रखने और घरों से डोर-टू-डोर कचरा कलेक्ट करने में पांच हजार सफाई कर्मचारी रोजाना सड़कों पर होते हैं, लेकिन ज्यादातर के पास न तो जूते हैं और न ही दस्ताने और न पर्याप्त संसाधन हैं । यही नहीं बारिश से बचने के लिये रैनकोट तक नहीं हैं। भारी बारिश के दौरान ये कर्मचारी भीगते हुये प्रदेश की राजधानी भोपाल में घरों से कचरा संग्रह ( कलेक्ट )कर रहे हैं।

 वहीं देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में सफाईकर्मियों के पास लगभग सभी जरूरी उपकरण व संसाधन मौजूद हैं। हालांकि नगर निगम प्रशासन का तर्क है कि सफाई कर्मचारियों के लिये शूज किट की राशि वेतन में जोड़ दी गई है। गमबूट भी दिये गये हैं और रैनकोट को पिछले साल दिया है। अब सवाल यह है कि इतना सामान देने के बाद भी यदि सफाईकर्मी गमबूट और दस्ताने पहने बिना ही साफ-सफाई के काम में जुटे हैं, तो फिर इसकी माॅनिटरिंग की जिम्मेदारी किसकी है ? 

इस मामले में मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के  अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री नरेन्द्र कुमार जैन ने *आयुक्त, नगर निगम, भोपाल से एक माह में जवाब मांगकर पूछा है कि ऐसा क्यूं हो रहा है ?*

प्राप्त जानकारी के मुताबिक भोपाल शहर में कोई पांच हजार से अधिक सफ़ाई कामगारों द्वारा औसतन 650 मीट्रिक टन से अधिक गीला व सूखा कचरा संग्रह किया जारहा है । 

कामगारों की व्यथा और समस्या को मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग द्वारा हित संरक्षण के लिए संज्ञान में लिया गया है ।

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