Wednesday, April 23, 2025
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दुभाषिया कैडर की समाप्ति: क्या है सरकार की नई रणनीति? No Interpreter Now In Ministrey Of Foreign services

विदेश मंत्रालय ने समाप्त किया दुभाषिया कैडर: एक युग का अंत!

दुभाषिया कैडर की समाप्ति: क्या है सरकार की नई रणनीति?

विदेश मंत्रालय ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अपने दुभाषिया (इंटरप्रेटर) कैडर को पूरी तरह से समाप्त करने का फैसला किया है। यह निर्णय तब लिया गया जब पाया गया कि अनुवाद की गुणवत्ता संतोषजनक स्तर पर नहीं थी। अब, सरकार नए भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारियों को विदेशी भाषाओं का गहन प्रशिक्षण प्रदान कर रही है, जिससे वे अनुवाद और व्याख्या कौशल दोनों में निपुण हो सकें।

इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुई थी इस कैडर की शुरुआत

इस कैडर की नींव प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासनकाल में रखी गई थी। वर्षों तक, दुभाषियों ने भारत के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी विदेशी नेताओं से बातचीत के दौरान दुभाषियों की सहायता लेते रहे हैं। उदाहरण के लिए, जब पीएम मोदी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बैठक हुई थी, तब दुभाषियों ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

क्यों लिया गया यह बड़ा फैसला?

मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, समय के साथ यह स्पष्ट हुआ कि अधिकांश दुभाषिये केवल शब्दशः अनुवाद कर रहे थे, जबकि प्रभावी व्याख्या एक विशिष्ट कौशल है। इस कारण, सरकार अब आईएफएस अधिकारियों को विदेशी भाषाओं में प्रशिक्षित कर रही है, ताकि वे न केवल अनुवाद कर सकें, बल्कि प्रभावी संवाद भी स्थापित कर सकें।

आईएफएस अधिकारियों को क्यों दिया जा रहा है भाषा प्रशिक्षण?

भारतीय विदेश सेवा (IFS) में शामिल होने वाले नए अधिकारियों को पहले भी संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा के दौरान एक अनिवार्य विदेशी भाषा सीखने की आवश्यकता होती थी।

आईएफएस के छह-चरणीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में पहले से ही विदेशी भाषा सीखने की व्यवस्था थी, लेकिन अब इसे और अधिक प्रभावी बनाया जा रहा है। इस पहल के तहत, अधिकारियों को विदेशी विश्वविद्यालयों में भेजकर रूसी, चीनी, अरबी और जापानी जैसी महत्वपूर्ण भाषाओं का गहन ज्ञान प्रदान किया जाएगा।

दुभाषिया कैडर की स्थापना और समाप्ति का सफर

भारतीय विदेश सेवा की स्थापना 1946 में अंतरिम सरकार के दौरान हुई थी। शुरुआती वर्षों में कोई औपचारिक दुभाषिया कैडर नहीं था। उस समय भारतीय सिविल सेवा (ICS) के अधिकारी अपने व्यक्तिगत भाषा ज्ञान के आधार पर कार्य करते थे।

1970 के दशक में वैश्विक परिस्थितियों में बदलाव के कारण, रूसी, चीनी, अरबी और जापानी जैसी भाषाओं की आवश्यकता महसूस की गई। 1984 में पहली बार इस कैडर के लिए नियमित भर्ती शुरू हुई। लेकिन अब लगभग 40 साल बाद, सरकार ने इसे समाप्त करने का निर्णय लिया

क्या होंगे इस फैसले के दूरगामी प्रभाव?

  1. आईएफएस अधिकारियों की बहुभाषीय दक्षता बढ़ेगी – अब वे केवल अनुवाद पर निर्भर नहीं रहेंगे, बल्कि स्वयं संवाद स्थापित कर सकेंगे।
  2. बेहतर कूटनीतिक संबंध – भाषा की गहरी समझ से भारत की अंतरराष्ट्रीय संवाद क्षमता में सुधार होगा।
  3. नई नौकरियों का सृजन – निजी क्षेत्र में स्वतंत्र दुभाषियों की मांग बढ़ सकती है।

दुभाषिया कैडर की समाप्ति भारतीय विदेश मंत्रालय के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह फैसला भविष्य में भारतीय कूटनीति को अधिक आत्मनिर्भर और प्रभावी बना सकता है। क्या यह बदलाव भारत की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को और सशक्त बनाएगा? यह देखने योग्य होगा!

आपका क्या विचार है इस ऐतिहासिक फैसले पर? हमें कमेंट में बताएं!

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