जिन परिवारों के ग्रहों की दशा और परिस्थितियां प्रतिकूल यानी अशुभ होती हैं, उन्हें शुभ करने के लिए ही दशा माता का व्रत और पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं पूजा और व्रत करके गले में एक खास डोरा (पूजा का धागा) पहनती है ताकि परिवार में सुख-समृद्धि, शांति, सौभाग्य और धन संपत्ति बनी रहे। ग्रंथों के अनुसार, ये व्रत करने से सभी तरह की परेशानियों से बचा जा सकता है। इससे जुड़े कुछ नियम भी बताए गए हैं, जो इस प्रकार हैं…
1. दशा माता का व्रत एक बार करने के बाद हर बार किया जाता है। इस व्रत को बीच में नहीं छोड़ सकते। ऐसा करना अशुभ माना जाता है। अगर बहुत जरूरी हो तो उद्यापन करने के बाद इसे छोड़ सकते हैं।
2. दशा माता की पूजा पीपल के पेड़ की छाँव में करना शुभ माना जाता है। और पीपल के आस-पास पूजा का धागा भी बांधा जाता है। पीपल की की पूजा से भगवान विष्णु की पूजा भी इस दिन हो जाती है।
3. इस व्रत में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। घर की अनावश्यक चीजें भी बाहर रख दी जाती है। साथ ही इस दिन सफाई से जुड़े समान यानी झाड़ू आदि खरीदने की परंपरा भी प्रचलित है।
4. दशामाता व्रत करने वाली महिलाएं दिन भर में मात्र एक बार भोजन या फलाहार कर सकती है कर सकती हैं। इस व्रत में बिना नमक का भोजन किया जाता है।
5. मान्यता है कि दशामाता व्रत को विधि-विधान, सच्चे मन, भक्ति भाव से करने पर, एक साल के भीतर जीवन से जुड़े दु:ख और समस्याएं दूर हो जाती हैं।
6. दशा माता का डोरा साल भर गले में पहना जाता है। लेकिन यदि दशा माता का डोरा साल भर नहीं पहन सकते हैं तो वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में किसी अच्छे दिन खोलकर रखा जा सकता है। उस दिन व्रत करना चाहिए।