सिंधी समाज द्वारा मनाया जाने वाला थदड़ी बड़ी सातम त्योहार गुरुवार 4 ऑगस्ट को मनाया जाएगा। समाज की महिलाएं इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाती है । तैयारियों के लिए रविवार को ही विभिन्न व्यंजन जिनमें खट्टा, मीठा, भात, औलिया, पकवान, खोरा एवं नानखटाई आदि बनाए जाएंगे । थदड़ी पर्व के दिन महिलाएं सितला माता का पूजा करती हैं ।
इस त्योहार के एक दिन पहले रविवार को हर सिंधी परिवारों में तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाएंगे। रात को सोने से पूर्व चूल्हे पर जल छिड़क कर हाथ जोड़कर पूजा की जाती है। इस तरह चूल्हा ठंडा किया जाता है। दूसरे दिन घरों में चूल्हा नहीं जलता है एवं एक दिन पहले बनाया ठंडा खाना ही खाया जाता है। इसके पहले परिवार के सभी सदस्य किसी नदी, नहर, कुएं या बावड़ी पर एकत्रित होते हैं और वहां मां शीतला देवी की विधिवत पूजा की जाती है। इसके बाद बड़ों से आशीर्वाद लेकर प्रसाद ग्रहण किया जाता है। बदलते दौर में जहां शहरों में सीमित साधन व सीमित स्थान हो गए हैं। ऐसे में पूजा का स्वरूप भी बदल गया है। अब कुएं, बावड़ी व नदियां अपना अस्तित्व लगभग खो बैठे हैं। ऐसे में आजकल घरों में ही पानी के परिण्डे जहां पर होते हैं, वहां पूजा की जाती है। इस पूजा में घर के छोटे बच्चों को विशेष रूप से शामिल किया जाता है और मां का स्तुति गान कर उनके लिए दुआ मांगी जाती है कि वे शीतल रहें व माता के प्रकोप से बचे रहें। इस दौरान ये पंक्तियां गाई जाती हैं। घर के बड़े बुजुर्ग सदस्यों की ओर से घर के सभी छोटे सदस्यों को भेंट स्वरूप कुछ न कुछ दिया जाता है। ठंडा खाने के पीछे समाज के बड़े बूढ़े ये भी बताते है की इसका वैज्ञानिक कारण ये है की ठंडे के बहाने शरीर की इम्यूनिटी रिवाइव हो जाती हैं।

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