भारत में सार्वजनिक रूप से मेले-ठेले या होली-दिवाली मिलन पर तो ताम्बोला का आयोजन हो ही रहा है, अब यह ‘हिंदू नव वर्ष’ समारोह में इसे बड़े किया जाने लगा है। षौक से आयोजित होते देखा जाने लगा है। यही नहीं, जो समाज अपने आप को जुआ से हमेषा दूर रखती आई है ऐसी जैन समाज भी इस जुआ मिश्रित खेल के आयोजनों से रोक नहीं पायी है। क्यों कि यह खेल मजेदार है, उत्सुकता, मनोरंजन, एकाग्रता, रोमांच, तत्परता, सरलता सभी कुछ समेटे हुए है। पर पैसे दांव पर लगे होने से जूए का ही एक स्वरूप है।
गगन शर्मा ने लिखा है कि तम्बोला, हाउजी या बिंगो, एक ही ‘बोर्ड खेल’ के विभिन्न नाम हैं। जो दुनिया भर में और भी नामों से खेला और पसंद किया जाता है। वैसे तो यह आयातित खेल वर्षों से हमारे यहां भी खेला जा रहा है, पर इधर कुछ सालों से इसकी लोकप्रियता दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ी है और अभी भी बढ़ती ही जा रही है।
यह महिलाओं की ‘किटी पार्टियों’ का तो एक आवश्यक अंग बनने के साथ-साथ मेले-ठेले-उत्सवों इत्यादि में भी अपनी पैठ बना चुका है। इसकी लोकप्रियता का कारण इसका रोमांचक स्वभाव, संभावना-युक्त और सरल होना है जिसके कारण कोई बच्चा भी इसे खेल सकता है।
दुनिया भर में यह कई तरह से खेला जाता है पर मूल पद्यति एक जैसी ही होती है।

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