. व्हाइट कोट की कार से क्राइम सीन तैयार!

घटना के बाद…

गति का मर्डर केस
कार नहीं थी… गोला था!
जिसने दीपक जैन को उड़ा दिया।
रिवॉल्वर नहीं, हथियार नहीं, सुपारी नहीं —
लेकिन हत्या हुई है, सड़क पर — सबके सामने, दिन के उजाले में।

और अब इस हत्या को एक्सीडेंट की चादर में लपेटने की तैयारी चल रही है।
जैसे एक इज्ज़तदार सर्जन का दर्जा, कानून से ऊपर हो गया हो।
जैसे डॉक्टर की डिग्री, ट्रैफिक नियमों की इम्युनिटी बन गई हो।


कलेक्टोरेट रोड पर दीपक जैन की मौत… और याद कीजिए डी मार्ट के सामने का हादसा!

क्या फर्क है?

वहाँ युवतियों ने कार से युवक को उड़ा दिया था

यहाँ डॉक्टर साहब ने कार से व्यापारी को उड़ा दिया

दोनों घटनाएं वाई.डी. नगर थाना क्षेत्र की हैं।
दोनों में कार बन गई थी मौत का सामान।
लेकिन दोनों मामलों में सिस्टम की भूमिका भी लगभग एक जैसी है — धीमी, संवेदनहीन और ढोंगी।


व्यवस्था का जवाब: क्या होगा

“जांच चल रही है”
“प्रकरण विवेचना में है”
“कार अनियंत्रित हो गई थी”

वाह! अनियंत्रित कार चलाने का लाइसेंस अब उपलब्ध है क्या?
क्योंकि इस शहर में नियम सिर्फ साइकिल वालों और छोटे चालकों के लिए हैं।


सड़क किसकी है?

ये सड़क डी मार्ट की नहीं, कलेक्टोरेट की नहीं,
ना डॉक्टर साहब की, ना किसी रईस की —
ये सड़क है आम नागरिक की, उस दीपक की जिसने ई-बाइक को साइड में लगाया और फोन पर बात कर रहा था।
जिसका अपराध सिर्फ इतना था कि वह सड़क किनारे था।

कानून कहता है — सड़क पर पहला हक पैदल चलने वालों और साइकिल सवारों का होता है।
लेकिन आजकल पहले हकवाले मरते हैं… और बाद में गाड़ी चलाने वाले ज़मानत पर मुस्कुराते हैं।


यह कोई एक्सीडेंट नहीं — यह गैर इरादतन हत्या है!

IPC की धारा 304-A का लेप लगाकर, इस लापरवाही को हल्का मत बनाइए।
जब कार हथियार बन जाए, जब ड्राइवर खुद बेकाबू हो —
तो यह हत्या है। गैर इरादतन सही, लेकिन हत्या!

—सुलगते सवाल

  1. क्या डॉक्टर साहब को इसलिए छोड़ा गया क्योंकि वह रसूखदार हैं?
  2. क्या डी मार्ट मामले की तरह, इस केस में भी किरदार बदलकर कहानी खत्म कर दी जाएगी?
  3. वाई डी नगर थाना क्षेत्र कब तक हादसों का कब्रिस्तान बना रहेगा?
  4. क्या मंदसौर में कोई ट्रैफिक सिस्टम है या सिर्फ चालान विभाग है?

एक व्यापारी गया… एक युवक गया… अगला कौन?
जब तक सड़क पर खड़े रहना भी मौत का निमंत्रण बन जाए, तब समझ लीजिए — सड़क नहीं, जंगल है!

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