मन्दसौर। बड़े-बड़े पंडाल जहां भारतीय संस्कृति और संस्कारों का संरक्षण करते हैं वहीं गली मोहल्ले में विराजित छोटे-छोटे गणपति के पंडाल सामाजिक समरसता की मिठास खोलते हैं। भारतीय जनमानस में परंपराओं का संरक्षण संस्कृति की रक्षा एवं सामाजिक समरसता का भाव जागृत करने के लिए सन 1893 में बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की थी यह परंपरा आज भी संपूर्ण देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी जीवित है।
गणपति विसर्जन की पूर्व संध्या पर मंदसौर नगर में भी पहली बार समरसता आरती का भव्य आयोजन किया गया जिसमें वंचित समाजो को विशिष्ट अतिथि के रुप में आमंत्रित कर उनका गणपति पंडाल में कुमकुम तिलक लगाकर, गणपति कैट पहनाकर स्वागत सत्कार कर गणपति की आराधना की गई।
दया मंदिर परिसर पर स्थित गणेश पांडाल में मालवांचल के प्रसिद्ध संत श्री महेशमणिजी महाराज के सानिध्य में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित साठिया समाज, बरगुंडा समाज एवं वाल्मीकि समाज बंधुओं द्वारा भगवान गणेश की आरती की गई।
कार्यक्रम में पधारे सभी समाज प्रमुखों का एवं मातृशक्ति का कुमकुम तिलक लगाकर एवं गणेश टोपी पहना कर स्वागत साथिया समाज की बहनों द्वारा किया गया। इस अवसर पर क्षत्रिय मराठा समाज, सिंधी समाज, धनगर गुर्जर गायरी समाज, राजपूत समाज, माली समाज, जैन समाज, माहेश्वरी समाज, जांगड़ा पोरवाल समाज, स्वर्णकार समाज, सेन समाज, माली समाज, तंबोली समाज, कोली समाज, अहिरवार समाज, ग्वाला समाज, दमामी समाज आदि समाजों के प्रमुख प्रतिनिधियों ने भी समस्त आरती में भाग लिया और अतिथियों का स्वागत सत्कार किया।

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