भारत OTT प्लेटफॉर्म्स का हब बनता जा रहा है ,  ओटीटी पर इन दिनों दो तरह से वेब सीरीज और फिल्में प्रसारित हो रही हैं, विज्ञापन आधारित और ग्राहक आधारित। मनोरंजन सामग्री को मुफ्त में देखने वालों को बीच मे विज्ञापन देखने होते हैं और जिनको बिना विज्ञापन के फिल्में और वेब सीरीज देखनी होती हैं, वे इसके लिए पैसे देते हैं। और, पैसा देकर ओटीटी सामग्री परोसने वाले ओटीटी में नेटफ्लिक्स के दाम सबसे ज्यादा है। हालांकि कंपनी ने भारत आने के पांच साल बाद पहली बार अपने दामों में भारी कटौती भी की लेकिन कंपनी के सह संस्थापक रीड हैस्टिंग्स के मुताबिक भारतीय बाजार नेटफ्लिक्स के लिए अब भी चुनौती ही बना हुआ है। नेटफ्लिक्स ने भारत में अपनी प्रबंधन टीम में बीते साल काफी बड़ा उलटफेर किया और इसकी क्रिएटिव टीम में भी बदलाव किए लेकिन बाजार के जानकारों का मानना है कि दिक्कत नेटफ्लिक्स की मार्केटिंग टीम में है। नेटफ्लिक्स की हिंदी में बनने वाली मनोरंजन सामग्री भी स्तरीय नहीं है।

नेटफ्लिक्स की बीते हफ्ते हुई अर्निंग्स कॉन्फ्रेंस कॉल की जानकारियां जैसे जैसे बाहर आ रही हैं, इसके भारतीय दफ्तर में हलचल साफ देखी जा सकती है। इस अमेरिकी ओटीटी को उम्मीद थी कि हिंदी में ‘सेक्रैड गेम्स’ जैसी वेब सीरीज से शुरुआत करके वह भारतीय बाजार में वैसा ही झंडा गाड़ देगी जैसा उसने एशिया प्रशांत क्षेत्र के दूसरे देशों दक्षिण कोरिया और जापान में किया। लेकिन इन दोनों देशों के मुकाबले भारत में कंपनी की हालत बहुत उत्साहजनक नहीं है। बीते वर्ष की आखिरी तिमाही में नेटफ्लिक्स ने इस क्षेत्र में 25.8 लाख ग्राहक नए जरूर जोड़े लेकिन उत्तरी अमेरिका, लैटिन अमेरिका और यूरोप के मुकाबले ये तादाद बहुत कम है।

पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र के सारे ग्राहक मिलाकर भी नेटफ्लिक्स के कुल ग्राहकों का 15 फीसदी भी नहीं हो पाए हैं। हालांकि, कंपनी के सीओओ ग्रेग पीटर्स मानते हैं कि भारत में ग्राहक दर घटाने का कंपनी को फायदा मिलेगा और इससे उसके ग्राहकों की संख्या में इजाफा जरूर होगा। हालांकि, नेटफ्लिक्स की भारतीय शाखा इस पहल का प्रचार प्रसार भी उन क्षेत्रों में अच्छे से नहीं कर सकी, जहां के देसी इलाकों में इंटरनेट का घनत्व बढ़ा है और जहां हिंदी मनोरंजन सामग्री देखने वालो की तादाद बीते दो साल में तेजी से बढ़ी है।