भारत के लोगो के स्वाभीमानपूर्ण जीवन के लिये ब्रिटिश साम्राज्य की समाप्ति की आवश्यकता अनुभव कर भारत के महान नेताआंे ने लगभग एक शताब्दी तक संघर्ष किया। सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के साथ हुआ ये संघर्ष 15 अगस्त 1947 तक को देश की आजादी तक जारी रहा। सन् 1885 में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की स्थापना से इस ध्येय को साकार करने में महत्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ। तत्कालिन नेतागण श्री बाल गंगाधर तिलक, श्री गोपालकृष्ण गोखले, पंडित मोतिलाल नेहरू, इस आंदोलन को गति प्रदान कर रहे थे तब ही मोहनदास करमचंद गाँधी (महात्मा गाँधी ) के द्वारा आंदोलन की कमान सम्हाल लेने से आंदोलन का स्वरूप व्यापक हो गया तथा अंग्रेज सरकार ने जनभावना को अनदेखा करना असंभव जानकर आंदोलन से निपटने के उपाय करना आरम्भ किये, किन्तु गाँधीजी के साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल एवं मौलाना अब्दुल कलाम आजाद जैसे बड़ी संख्या में प्रभावी नेताओं का सम्बल था। कांतिक्रारियों नेताजी सुभाषचंद्र बोस, चंदशेखर आजाद, अशफाकउल्ला खाँ, भगतसिंह, सुखदेव, ने अपनी नीति के अनुसार अंग्रेजांे के नाक में दम कर रखा था। इतिहास का घटनाक्रम समय के साथ आगे बढ़ता चला गया। वह समय नजदीक आता गया जब भारतमाता की बेड़िया टूटना थी और लाल किले पर तिरंगा लहराना था। 14 जुलाई 1942 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अंग्रेजों भारत छोड़ो की ललकार के साथ ब्रिटिश सरकार को अन्तिम चेतावनी दी। अंग्रेजों की नियत पर से आंदोलन को कर्णधारों का विश्वास उठ चुका था क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत का समर्थन ब्रिटिश सरकार ने लिया तब ही भारत को आजाद कर देने का वचन भी दिया। जब यह वादा नही निभाया गया तब अंग्रेजो के साथ अंतिम युद्ध का ऐलान कर दिया गया। 9 अगस्त 1942 को क्रांति का ऐलान कर दिया गया। अपनी सफलता को सुनिश्चित करने के लिये गाँधीजी ने कांग्रेसजनों, देशवासियों से अपील की कि हिन्दू मुस्लिम का भेद मिटाकर स्वयं को भारतीय समझो। आज से स्वयं को स्वतंत्र समझो। करो या मरो का संकल्प लेकर आगे बढ़ो।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इस संकल्प व परिणामों की गंभीरता को अंग्रेज सरकार समझ रही थी तथा असंमजस्य मे थी। इसलिये परेशान होकर गाँधीजी और तमाम नेताओं को बंदी बना लिया गया। पूरे देश मे आंदोलन फैल गया कई स्थानों पर 9 अगस्त की सुबह तिरंगा झंडा फहराकर ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी गई। हड़ताल, धरना, प्रदर्शन बहिष्कार के रूप मे बिट्रिश सरकार का विरोध हुआ कई स्थानांे पर उत्साही नौजवानो और लोगांे ने रेल्वेस्टेशन, डाकघर फूंक दिये, रेल पटरियां उखाड़ दी। ब्रिटिश सत्ता के प्रतीक चिन्ह मिटा दिये। देश के अलग-अलग भागों में महिलाओं, किसानों, युवाओं ने आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। लाखों लोग गिरफ्तार किये गये । विधि पुलिस व सुरक्षा कर्मियों द्वारा बल प्रयोग किया, गोलिया बरसाई, कई लोग मारे गये। यह भारत छोड़ो आंदोलन देश की आजादी तक जारी रहा। अंततः भारत स्वतंत्रता बिल 1947 ब्रिटिश संसद में पास हुआ और स्वराज की स्थापना हुई। आज भारत के लोग स्वतंत्रता की साँस ले रहे है उसकी बुनियाद यह आंदोलन ही है। इस त्याग और बलिदान का जिसे बोध है वह कभी ऐसा कृत्य नहीं कर सकते जो देश की एकता, अखंडता व अस्तित्व पर आँच पैदा करे। यह भारत प्रत्येक भारतवासी का है। जाति, धर्म, सम्प्रदाय, वर्ग, भाषा व क्षैत्रियता का भेदभाव निरर्थक है। यहीं हमारे संविधान में हमने स्वीकार किया है। अपने सेनानियों के प्रति कृतज्ञता का भाव व राष्ट्रभक्ति का आचरण ।

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