
हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी, फैमिली कोर्ट का फैसला पूरी तरह गलत
इंदौर हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के विवादित आदेश को खारिज करते हुए इसे “पूरी तरह अनुचित और निराधार” करार दिया है। जस्टिस एस.ए. धर्माधिकारी और जस्टिस संजीव कलगांवकर की डबल बेंच ने स्पष्ट किया कि संविधान निर्माताओं ने हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदाय को हिंदू मैरिज एक्ट के तहत ही रखा है, ताकि विवाह और तलाक के मामलों में कानूनी एकरूपता बनी रहे।
कोर्ट ने यह भी कहा कि फैमिली कोर्ट के एडिशनल प्रिंसिपल जज को हिंदू मैरिज एक्ट की व्याख्या करने का अधिकार नहीं था और यदि कोई संदेह था तो इस मामले को हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए था।
क्या था मामला?
रिज एक्ट के तहत तलाक की याचिका दायर की। दोनों की शादी जुलाई 2017 में हुई थी, लेकिन कुछ समय बाद वे अलग हो गए और फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दी।
हालांकि, 8 फरवरी 2025 को फैमिली कोर्ट के एडिशनल प्रिंसिपल जज ने एक चौंकाने वाला फैसला सुनाते हुए याचिका को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि जैन समाज को 7 नवंबर 2014 के केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन के तहत अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त है, इसलिए हिंदू मैरिज एक्ट उन पर लागू नहीं होगा।
हाईकोर्ट ने क्यों बताया फैसला गलत?
हाईकोर्ट ने इस तर्क को पूरी तरह गलत और कानूनी रूप से अस्वीकार्य बताया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जैन समुदाय को भले ही अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया हो, लेकिन वह हिंदू मैरिज एक्ट के तहत ही आते हैं।
संविधान के अनुसार, हिंदू मैरिज एक्ट हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदाय के विवाह, तलाक और संपत्ति के मामलों को एक समान रूप से नियंत्रित करता है। इस फैसले से विवाह कानूनों में एकरूपता बनी रहती है और कानूनी भ्रम की स्थिति उत्पन्न नहीं होती।
कोर्ट ने यह भी कहा कि कोई भी जज अपने व्यक्तिगत विचारों के आधार पर राष्ट्रीय कानूनों में बदलाव नहीं कर सकता। फैमिली कोर्ट को यह मामला हाईकोर्ट को रेफर करना चाहिए था, ना कि अपने स्तर पर जैन समाज को हिंदू मैरिज एक्ट से बाहर करने का निर्णय लेना चाहिए था।
एक और केस हाईकोर्ट पहुंचा, फैमिली कोर्ट की दलील फिर गलत साबित
दिलचस्प बात यह है कि यही मामला एक और केस में भी सामने आया। एक अन्य जैन दंपति ने भी फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दी थी, जिसे इसी आधार पर खारिज कर दिया गया था कि जैन समुदाय पर हिंदू मैरिज एक्ट लागू नहीं होता।
इस फैसले को जैन समुदाय की एक महिला ने एडवोकेट रोहित मंगल के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने इस फैसले को भी निराधार करार दिया और कानूनी स्पष्टता बनाए रखने की जरूरत पर जोर दिया।
क्यों जरूरी है विवाह कानूनों की स्पष्टता?
यह मामला हिंदू मैरिज एक्ट और जैन समाज की कानूनी स्थिति को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म देता है।
✅ संविधान के अनुसार, जैन समाज अभी भी हिंदू मैरिज एक्ट के तहत आता है।
✅ यदि फैमिली कोर्ट का यह फैसला स्वीकार कर लिया जाता, तो इससे कानूनी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती।
✅ इस फैसले को खारिज करके हाईकोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि विवाह और तलाक के मामले में कानूनी एकरूपता बनी रहे।
हाईकोर्ट के इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया कि भारत के विवाह कानूनों में किसी भी जज या स्थानीय अदालत को बदलाव करने का अधिकार नहीं है।
निष्कर्ष
इंदौर हाईकोर्ट का यह फैसला सिर्फ जैन समुदाय के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे कानूनी तंत्र के लिए भी एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
फैमिली कोर्ट के फैसले को खारिज कर हाईकोर्ट ने यह संदेश दिया कि विवाह कानूनों की व्याख्या संविधान और स्थापित विधानों के आधार पर होनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत विचारों के आधार पर।
यह मामला इस बात की भी याद दिलाता है कि कानूनी स्पष्टता और एकरूपता न सिर्फ जरूरी है, बल्कि न्यायिक प्रणाली की मजबूती का भी आधार है।
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