
मन्दसौर। आचार्य श्री यशोभद्रसूरिश्वरजी एवं श्री पियुषभद्रसूरिश्वरजी म.सा. की पावन प्रेरणा एवं निश्रा में दिनांक 9 अक्टूबर से श्री बहीपार्श्वनाथ तीर्थ में लगभग डेढ़ माह के उपधान तप की धर्मसाधना का विराट आयोजन होने जा रहा है। असंयम से संयम की ओर, अनाचार से आचार की ओर ले जाने वाले इस अद्भूत तप की धर्मसाधना श्री बही पार्श्वनाथ स्थित श्री सम्मेदशिखर तीर्थ के पवित्र प्रांगण में होगी। आचार्य श्री यशोभद्रसूरिश्वरजी व श्री पियुषभद्रसूरिश्वरजी म.सा. व उनके साथ मंदसौर में चातुर्मास हतु विराजित सभी साधु-साध्वीगण इस उपधान तप की धर्मसाधना हेतु उपधार तप प्रारंभ होने से पूर्व श्री बही पार्श्वनाथ तीर्थ पहुुचेंगे तथा वही लगभग डेढ़ माह तक विराजित रहकर उपधार तप करने वाले श्रावक श्राविकाओं का उपधार तप की धर्मसाधना करायेंगे। इस तप के दौरान शामिल होने वाले सभी उपधान तप के तपस्वियेां को श्री बही पार्श्वनाथ के श्री सम्मेदशिखरजी तीर्थ धाम में ही रहना होगा तथा वे वही रहकर प्रतिदिन उपधान तप की साधना करेंगे। उपधान तप के लिये प्रथम प्रवेश 9 अक्टूबर को एवं द्वितीय प्रवेश 11 अक्टूबर को होगा। लगभग डेढ़ माह के साथ साधना पूर्ण होने के बादसभी तपस्वियां को बहुमान कार्यक्रम अर्थात मालारोहण दिनांक 27 नवम्बर को होगा। इसी दिन यह धर्मसाधना (तप) पूर्ण होगा। इस उपधान तप को कराने का धर्मलाभ गुरू भक्त परिवार श्रीमती प्रेमबाई पुनमचंदजी चौरड़िया के आशीर्वाद से श्रीमती साधना बेन ज्ञानचंदजी चौरड़िया परिवार (नीमच) ने लिया है।
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समता का जीवन जीने वाला ही दुखसे बच सकता है- आचार्य श्री पियुषभद्रजी म.सा.
मन्दसौर। पयुर्षण महापर्व के पूर्ण होने के बाद आचार्य श्री यशोभद्रसूरिश्वरजी म.सा. व आचार्य श्री पियुषभद्रसूरिश्वरजी म.सा. के प्रवचन नईआबादी आराधना भवन के उपाश्रय में प्रतिदिन प्रातः 9 से 10 बजे तक हो रहे हैं कल गुरूवार को आचार्य श्री पियुषभद्रसूरिश्वरजी म.सा.ने धर्मसभा में कहा कि जब मनुष्य को इच्छित सुख की प्राप्ति होती रहती है तो उनका मन प्रसन्नचित रहता है लेकिन जब इच्छित सुख नहीं मिलता है तो मन में वेदना व तिरस्कार का भाव पैदा होता है। हमें सुख में एवं दुख में समता का भाव रखना चाहिये। आपने कहा कि जिस प्रकार मिठाई एक ऐसा पदार्थ है कि जो एक मनुष्य के सुख का कारण बनता है लेकिन जिसे मधुमेह की बीमारी है उसके लिये वह दुख का कारण भी बनता है। एक ही पदार्थ दो अलग-अलग लोगों के लिये सुख व दुख का कारण है। इस बात को समझकर हमें पदार्थ की आसक्ति से बाहर निकलना पड़ेगा तभी हम शाश्वत सुख को प्राप्त कर पायेंगे। मनुष्य यदि समता का जीवन जीये तो वह सुख दुख होने की भावना से उपर उठ सकता है। आपने कहा कि मनुश्य को साधनों का आदि नहीं बनना चाहिये यदि साधनों के आदि बन जाओगे तो सुख के लिये लाया गया साधन आपके दुख का ही कारण बनेगा जो व्यक्ति जितना भौतिक साधनों का कम उपयोग करता है वह व्यक्ति उतना ही ज्यादा सुखी रहता है जो व्यक्ति भौतिक साधनों का आदि हो जाता है वह व्यक्ति साधनों का गुंलाम बन जाता है और गुलाम व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजनों ने आचार्य श्री की अमृतमयी वाणी का धर्मलाभ लिया।