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‘मंदसौर शहर का आभारी हंू जो मुझे इतना सम्मान देता हैं, मैंने सिर्फ अपना काम करने की कोशिश की हैÓ ये कहना है ख्यातनाम चिकित्सक डॉ विजय शंकर मिश्र का वे अपने व्यस्त जीवन से कुछ लम्हे चुराकर ‘दैनिक पाताल लोकÓ से चर्चा कर रहे थे डॉ मिश्र का चिकित्सकीय जीवन १९७४ से शुरू हुआ जब उन्होंने इंदौर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया। १९८२ में वे शासकीय सेवा में आ गए पहले सीधी और फिर मंदसौर चिकित्सालय में रहे। सबसे लम्बा समय १९९० से २०१२ तक वे यहां अपनी सेवाएं देते रहे। डॉक्टर्स की शासकीय सेवाओं में अरूचि और अस्पतालों की स्थिति पर वे कहते हैं कि यंग डॉक्टर कम तनख्वाह की वजह से आना नहीं चाहते। शासन की रूचि नहीं होती एक्सपटर््स से राय नहीं ली जाती, बजट और विजन दोनों का अभाव है, चिकित्सा पे कितना खर्च हो प्रचार-प्रसार पर कितना हो सब घालमेल है, दवाएं नहीं है जांच की सुविधाएं कम है ऐसे में शासकीय सुविधाओं का स्तर कैसे ऊंचा हो।
मंदसौर में प्रायवेट सेक्टर में चिकित्सा पर डॉ मिश्र कहते है कि यहां भी जितना स्किल चाहिए नहीं है। इसलिए पेशेन्ट को रैफर करना पड़ता है। यह पूछा जाने पर की शहर की डिमांड है कि आप कुछ समय फिर से अस्पताल में दें डॉ मिश्र कहते है कि व्यक्ति का नहीं संस्था का महत्व है, संस्थाएं कभी मरती नहीं चलती रहती है पार्ट टाईम थोड़ा समय नि:शुल्क जिला चिकित्सालय को देने के बारे में विचार किया जा सकता है।
लाइफ स्टाइल डिजीज: डॉ मिश्र ने कहा कि हमारी जीवन शैली जैसे-जैसे समृद्ध हुई हमारा खान-पान, उठना बैठना सब बिगड़ गया जिससे पहले मेटाबॉलिज्म डिस्टर्ब होता है, फिर डायबिटिज होता है, और फिर हायपरटेंशन और दिल की बीमारी होती है अगर शुगर है तो ब्लडप्रेशर होने का चांस डबल है और यदि ये दोनों है तो हार्टअटेक का खतरा चार गुना हो जाता है, दुर्भाग्य है कि हमारे देश में शुगर ४० के पहले हो रही है जबकि दुनिया के अन्य देशों में यह ६० की उम्र पर होती है, उन्होंने कहा कि हम अपनी लाइफ स्टाइल बदलें तभी यह बीमारियां कम होगी। हालांकि इसका एक कारण हमारा ‘स्टार्वजीनÓ भी है। ऐसे में परिवार को संभालने के दायित्व से पेशन्ट भटक जाता है बल्कि परिवार को उसे संभालना पड़ता है।
गिरावट का कारण शिक्षा: सभी क्षेत्रों में (चिकित्सा सहित) गिरावट का मुख्य कारण है कि हमारा बेस्ट टेलेन्ट शिक्षण में नहीं आता, बल्कि जिसे किसी भी क्षेत्र में कोई सफलता नहीं मिलती वह शिक्षक बन जाता है, हमारे टीचर्स मजबूरी में टीचर्स बन रहे है स्वेच्छा से नहीं। उन्होंने शासकीय योजनाओं के फ्लॉप होने का कारण हस्तक्षेप और राजनीति को बताया। डॉ मिश्र ने कहा कि चीन में १९६५ में ‘नंगे पैर डॉक्टरÓ अभियान शुरू किया था जिसमें छोटी-मोटी बीमारियोंं का इलाज गांव में गांव के ही प्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा किया जाता था। चीन ने इसे बेस बनाकर श्रेष्ठ चिकित्सा सेवाएं हासिल की। हमारे यहां इस स्कीम को शुरू तो किया गया पर यह राजनीति का शिकार होकर फ्लॉप हो गई।
सेम पित्रोदा: डॉक्टर साहब ने भारत की तरक्की में सेम पित्रोदा (राजीव गांधी के सलाहकार) को दो बड़े योगदान के लिए याद किया एक सी डॉट जिससे संचार के क्षेत्र में क्रांति हुई और दूसरा हेण्ड पम्प जिसके पानी से उल्टी दस्त जैसे संक्रमण लगभग समाप्त हो गए जिन पर पहले बड़ी मात्रा में शासकीय समय और बजट खर्च होता था।
पढऩे-लिखने का शौक: डॉ मिश्र ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि उन्हें पढऩे का शोक है। काफी पहले वो करंट अफेयर्स पर वे जागरण और आज आदि अखबारों में लिखते भी रहे है, प्रेमचंद, श्रीलाल शुक्ल और फणीश्वरनाथ रेणु को उन्होंने बहुत पढ़ा। ‘रागदरबारीÓ उनका पसंदीदा उपन्यास है, इन दिनों वे कई महान लोगों की आत्मकथा पढ़ते रहे हैं।
नो पोलिटिक्स प्लीज: एक समय ‘आपÓ पार्टी से उम्मीदवार के रूप में डॉक्टर मिश्र का नाम सुर्खियों में आया था। इस बारे में वे कहते हैं। उनकी न कोई राजनीतिक महत्वकांक्षा है ना इच्छा वे जो कर रहे है उसी में खुश है।
स्वार्थ निस्वार्थ और परमार्थ: डॉक्टर मिश्र युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि जीवन जीने के तीन तरीके हैं स्वार्थ, निस्वार्थ और परमार्थ, हम जिस क्षेत्र में भी है अपना काम ठीक से करें और इस ढंग से करें कि दूसरों को कष्ट न हो इतना ही काफी है।
ईश्वर की कृपा: अपने सफल चिकित्सकीय जीवन और लोगों के अपार स्नेह को वे विनम्र भाव से लेकर कहते हैं मैंने सिर्फ अपना काम किया है बाकी ईश्वर की कृपा और लोगों का प्रेम है जिसने मुझे नवाजा है।
गुस्सा आता है: सहज, सरल डॉ मिश्र गुस्सा आने के सवाल पर मुस्कराते हुए कहते हैं आता है! मैं भी इंसान हंू लेकिन गुस्से के कारण को भी समझते हुए पलक झपकते ही नारमल हो जाता हंू।