शहर फैलता जा रहा, लेकिन श्मशान एक का एक
कम से कम तीन श्मशान घाट की ओर जरूरत पड़ रही शहर में
पालो रिपोर्टर = मंदसौर
महू-नीमच राजमार्ग स्थित मुक्तिधाम(श्मशान घाट) उस वक्त बना हुआ है, जब शहर की आबादी मुटठ्ीभर हुआ करती थी, लेकिन आज आबादी के मान से और क्षेत्रफल के मान से शहर काफी विशाल हो चुका है और यह प्रगति लगातार जारी है। एसे में इस मुक्तिधाम से दूरस्थ बसे क्षेत्रों से मुर्दों को मुक्तिधाम तक लाने में खुद दागियों की जान निकल रही है। जबकि जिम्मेदारों को अब तक तो शहर में आवश्यक्ता के मान से कम से कम तीन श्मशान और बना देने चाहिए थे। खैर देर से ही सही, लेकिन इस मामले में अब प्रभावी कदम उठाने की जरूरत पडऩे लगी है। इसी तरह नपा को चाहिए कि मुक्तिधाम पर इलेक्ट्रीक शव दाह गृह की भी व्यवस्था की जाए।
यदि आप अभिनंदन नगर, यश नगर, गांधी नगर, मेघदूत नगर, रामटेकरी, ऋषियानंद नगर, खानपुरा क्षेत्र में किसी की अंतिम यात्रा में जा रहे हैं तो ये समझकर चलिएगा कि पूरे रास्ते मुर्दे को ढोते-ढोते अमर विश्रांति आने तक आपके प्राण निकलने जैसी स्थिति हो जाएगी। क्योंकि इन क्षेत्रों से वर्तमान शिवना नदी तट पर स्थित मुक्तिधाम की दूरी 4 से 5 किमी है, जो की बहुत अधिक होती है। जबकि अन्य अधिकांश शहरों में रहवासी इलाकों से मुक्तिधाम की दूरी लगभग दो किमी से अधिक नहीं होती। अकेले मंदसौर शहर के अंदर ही यह स्थिति उत्पन्न हो रही है। जबकि वर्तमान मुक्तिधाम पर यदि गौर करेें तो यह उस वक्त का श्मशान घाट है, जब मंदसौर की आबादी जनकूपुरा, शहर क्षेत्र, खानपुरा और अधिक से अधिक नयापुरा रोड तथा बालागंज तक समिति हुआ करती थी। किंतु अब हमारा शहर तेजी से रेवास-देवड़ा रोड, संजीत रोड, प्रतापगढ़ रोड, अभिनंदन नगर, महू-नीमच राजमार्ग पर मंडी तक और सीतामउ फाटक से भी आगे तक बसता जा रहा है, जहां से इस मुक्तिधाम तक आने में काफी समय और परिश्रम लगता है। एसे में या तो मृतक के परिवार को सनातन परंपरा के विरूद्ध शव वाहन का इस्तेमाल करना पड़ता है या न चाहते हुए अपने कांधों पर गर्मी और बारिश जैसे मौसम में लाश को ढोना पड़ता है।
इन दो स्थानों पर तो बनना ही चाहिए
अमूमन शहर की सबसे अधिक नई बसाहटा अभिनंदन नगर, रामटेकरी, भागवत नगर, हनुमान नगर, सुदामा नगर, मेघदूत नगर, किटीयानी, संजीत रोड, जनता कॉलोनी, यश नगर, स्नेह नगर, अयोध्या बस्ती, गांधी नगर आदि क्षेत्रों में फैलती जा रही है। इन तमाम क्षेत्रों में शहर की लगभग आधी जनसंख्या वर्तमान में बस रही है। एसे में जिम्मेदारों को एक श्मशान अभिनंद नगर में ताकि पटरी पार के तमाम क्षेत्रवासियों को सुविधा मिल सके। इसी तरह रामटेकरी में दूसरा श्मशान हो ताकि किटीयानी, जनता कॉलोनी, रामटेकरी, मेघदूत नगर, गांधी नगर आदि क्षेत्रवासियों को सुविधा हो। इसी तरह तीसरा श्मशान
यहां सिर्फ नामदेव समाज ही करती है इस्तेमाल
एसा नहीं है, कि शहर में अन्य कहीं श्मशान घाट नहीं है। एक और श्मशान घाट रावण रूंडी के पास शिवना तट पर बना हुआ है, लेकिन इस श्मशान घाट का इस्तेमाल अधिकांश नामदेव समाज ही करता है। शेष अन्य समाज के परिवार जो खानपुरा में बसते हैं वे आज भी मृतक को वर्तमान मुक्तिधाम पर ही लाते हैं। हालांकि नामदेव समाज ने कभी अन्य समाजजनों के शव दाह पर आपत्ति नहीं ली, लेकिन लोगों में एक मान्यता ही यह बनी हुई कि वे महू-नीमच राजमार्ग स्थित मुक्तिधाम पर ही जाते हैं।
अधिकतर दागिये गाडिय़ों पर
एक तो विभिन्न क्षेत्रों से मुक्तिधाम काफी दूर है। उस पर भी सीतम ये होने लगा है, कि वर्तमान फास्ट युग में अधिकांश दागिये मृतक के घर के बाहर मुंह दिखाई की रस्म अदा करके गाडिय़ों से मुक्तिधाम पहुंच जाते हैं या पहले से मुक्तिधाम पर शवयात्रा आने का इंतजार करते मिलते हैं। एसे में पहले ही मृतक का घर और मुक्तिधाम की दूरी काफी होती है और उस पर दागियों की कमी किसी भी अंतिम यात्रा के लिए एक विकट परिस्थिति उत्पन्न कर देती है। इसके लिए भी सबसे अधिक जरूरी है कि शहर में अन्य स्थानों पर भी श्मशान घाट बनाए जाएं।
विद्युत शव दाह गृह भी बनना चाहिए
चुंकि हमारा मंदसौर भी अब आधुनिक शहरों की तरह दिन दुगनी रात चौगनी तरक्की की और अग्रेसर है। यहां भी अब इंदौर की तर्ज पर लोगों के पास समय बहुत कम बचा है। एसे में वक्त की नजाकत को देखते हुए नपा को चाहिए कि वर्तमान मुक्तिधाम पर तथा भविष्य में तय होने वाले श्मशान घाटों पर विद्युत शवदाह गृह भी बनाए जाएं, ताकि दागियों का समय भी बच सके और दाह में उपयोग होने वाल क्ंिवटलों लकड़ी बचे, जिससे वृक्षों की कटाई कम से कम हो।
मुक्तिधाम पर गिली हो गई लकडिय़ां
अब एक नजर वर्तमान महू-नीमच राजमार्ग स्थित मुक्तिधाम की व्यवस्थाओं पर गौर करें तो समय के साथ-साथ कभी अन्न क्षेत्र ने तो कभी नपा ने तो कभी किसी दानदाता ने इस मुक्तिधाम पर आवश्यक्तानुसार विकास करवाया है। किंतु मुक्तिधाम पर लकडिय़ों के भंडारगृह पर आज भी पक्की छत नहीं बन पाई और वही पुराने सड़े-गले पतरे हैं, जिससे हर बारिश में यहां रखी लकडिय़ां गिली हो जाती है और शव दाह में दिक्कत के साथ ही समय भी काफी लगता है। एसा ही वाकिया शुक्रवार सुबह भी हुआ जब दो दिन पूर्व हुई जबरदस्त बारिश से सारी लकडिय़ां भीग चुकी थी और एक के बाद एक यहां करीब 4 शव पहुंचे, जिनके दाह में काफी मशक्कत करना पड़ी है।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
बेशक दैनिक पाताल लोग द्वारा श्मशान घाट का यह जो मुद्दा उठाया है वह वाकई प्रंशसनीय है। चुंकि मंदसौर आबादी और जनसंख्या के मान से निरंतर बढ़ता जा रहा है और इसके लिए अन्य श्मशान घाट की महत्ती आवश्यक्ता है। नपा को चाहिए कि शहर के दूरस्थ क्षेत्रों में एक और श्मशान घाट स्थापित करे। इसके लिए मैं स्वयं भी प्रयास करूंगा।
-यशपालसिंह सिसौदिया, विधायक
अब तक यह मुद्दा मेरे सामने नहीं आया था, चुंकि आपने यह एक अच्छा मुद्दा उठाया है, जो जनहित का है। एसे में अब हम इस दिशा में जल्द ही कोई प्रभावी कदम उठाएंगे।
-आरपी मिश्रा, नपा सीएमओ
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